जन्मपूर्व लिंग जांच को वैध न बनाया जाए
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हमारे देश में जन्मपूर्व भ्रूण के लिंग की जांच को अपराध माना गया है। हाल ही में इंडियन मेडिकल कांउसिल के अध्यक्ष ने इस जांच को वैध बनाने का समर्थन किया है। यह भारत जैसे देश के लिए कई मायनों में सही नहीं कहा जा सकता है।
सही क्यों नहीं है ?
- हमारा समाज लैंगिक दृष्टि से बहुत ही असमान है।
- कार्यबल में महिलाओं का प्रतिशत लगातार कमी की ओर रहता है। घर में देखभाल की जिम्मेदारी के कारण श्रम बल से बाहर रहने वाली महिलाओं का हिस्सा 53% है, और पुरुषों का 1% है।
- महिलाओं को अवैतनिक काम का बोझ उठाने के साथ कमतर दर्जा दिया जाता है।
- भारत में जन्म के समय का लिंगानुपात अभी भी केवल 933 कन्या/प्रति 1000 पुरुष संतान है। लिंग जांच कानून में बदलाव, लापरवाही या ढील देने से कन्या भ्रूण हत्या के मामले किस सीमा तक बढ़ सकते हैं, इसका अनुमान लगाना कठिन है।
हमारे बीच अभी भी लिंगभेद बहुत गहरा दाग है। हमारे परिवारों, स्कूलों और कार्यस्थलों को जितना संभव हो सके, उतना समान बनाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 04 नवंबर, 2024
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