जनसांख्यिकीय संकट

Afeias
07 Apr 2021
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Date:07-04-21

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राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 में कुल प्रजनन दर को 2010 तक 2.1 करने का लक्ष्य रखा गया था। कर्नाटक, पंजाब, गुजरात, असम, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, प.बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों ने देर से सही, परंतु इस लक्ष्य को हासिल कर लिया है। दक्षिण भारतीय राज्यों ने तो लक्ष्य से बहुत पहले ही इसे प्राप्त कर लिया था। घटी प्रजनन दर का संबंध लगभग आधे भारत के प्रत्येक वर्ग से है। राष्ट्रीय नमूना स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 बताता है कि इस प्रयास में दक्षिण भारतीय राज्यों के अशिक्षित वर्ग ने भी समान भागीदारी की है। केरल और तेलंगाना जैसे मुस्लिम बहुल राज्यों की महिलाओं ने भी प्रजनन दर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आखिर दक्षिण भारतीय राज्यों की इस सफलता के पीछे क्या कारण काम कर रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में जनसंख्या बढ़ रही है। शिक्षा और साक्षरता के स्तर से पूरे, जनसंख्या घटाने के प्रयास में सफल होते दक्षिण भारत के पाँच राज्यों ने इस पारंपरिक अवधारणा को धता बता दिया है कि जनसंख्या नियंत्रण में साक्षरता, शिक्षा और विकास की ही प्रमुख भूमिका होती है। इस सफलता का सीधा संबंध इन राज्यों के प्रत्येक परिवार में दो बच्चों के आह्नवान और दो बच्चों के बाद महिला नसबंदी में दिखाई गई तत्परता से है।

उत्तर-मध्य भारत एवं दक्षिण भारतीय राज्यों में जनसांख्यिकीय अंतर अनुपातहीन होता जा रहा है। अब अन्य राज्यों में भी तत्काल कदम उठाने की जरूरत है –

  • अनचाहे गर्भ पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।
  • उत्तर प्रदेश में बनी स्टेट इनोवेशन इन फैमिली प्लानिंग सर्विसेस एजेंसी को सक्रिय किए जाने की जरूरत है।
  • अनेक जिलों में परिवार नियोजन के आधुनिकतम साधनों का तेजी से प्रचार कर उनकी उपलब्धता को सुगम बनाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय और राज्य नीति में तो पुरूष नसबंदी की अनुशंसा की जाती है, परंतु नेता इसे प्राथमिकता पर नहीं रखते हैं। विश्व के किसी भी अन्य देश में इतनी बड़ी संख्या में महिला नसबंदी नहीं की जाती, जितनी कि भारत में की जाती है। केरल जैसे प्रगतिशील राज्य की 88% महिला नसबंदी को ही प्राथमिकता देकर आगे बढ़ रहे हैं।
  • गर्भ निरोधक इंजेक्शन के प्रयोग में भारत काफी पिछड़ा हुआ है। इंडोनेशिया और बांग्लादेश में 1980 के दशक से इसका प्रयोग किया जा रहा है, वहीं भारत में इसे 2016 में सार्वजनिक उपयोग हेतु अपनाया गया है। इसका क्रियान्वयन सही तरीके से किए जाने पर जल्द ही परिणाम मिल सकेंगे।
  • विवाह और संतानोतपत्ति में देरी, महिलाओं के लिए गर्भ निरोधकों की आसान उपलब्धता और श्रम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाए जाने की जरूरत है।

जनसंख्या नियंत्रण व स्थिरता के अलावा इससे जुड़े अन्य मुद्दे –

  • सामाजिक सामंजस्य को सुरक्षित रखने के लिए लैंगिक अनुपात को ठीक रखा जाना चाहिए। पुत्र के जन्म को प्राथमिकता देना और कन्या के जन्म को घृणा से देखने की धारणा का ग्रामीण परिवेश में नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
  • पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं के भी अधिकार के कानून का उचित कार्यान्वयन नहीं हो सका है।
  • कन्या-भ्रूण हत्या के मामले अभी भी सामने आते रहते हैं। चीन में चालीस सालों से चल रही एकल संतान नीति और पुत्र जन्म की प्राथमिकता से वहाँ वधु-प्राप्ति का संकट खड़ा हो चुका है। भारत में इस मुद्दे पर और काम किए जाने की आवश्यकता है।
  • दक्षिण भारतीय राज्यों की बुजुर्ग होती जनसंख्या से भविष्य में कठिनाइयां बढ़ सकती हैं। मध्य-उत्तर भारतीय युवा इस समस्या को कम कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए सशक्त राजनीतिक सहयोग चाहिए।

भारत की जनसांख्यिकी एक त्रिआयामी पहेली की तरह है। इसे सुलझाने में टुकड़ों को चाहे कोने से जोड़ना शुरू करें या मध्य से, एक विकसित भारत की तस्वीर को पूरा करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित शैलजा चंद्रा के लेख पर आधारित। 16 मार्च, 2021