इस्लाम में सुधारात्मक परिवर्तन की आवश्यकता

Afeias
19 Nov 2020
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Date:19-11-20

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फ्रांस में मोहम्मद पैगंबर के कार्टूनों पर चल रहे विरोध में चार लोगों की बर्बरता से हत्या कर दी गई है। इन हत्याओं ने पूरे विश्व में आतंक का खौफ पैदा कर दिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने इन हत्याओं की निंदा करते हुए, कहा है कि फ्रांस की सरकार स्वतंत्रता के आदर्श और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यथासंभव उपाय करती रहेगी।

फ्रांस के राष्ट्रपति ने इन घटनाओं के मद्देनजर इस्लाम को संकट में बताया है। कुछ लोग इस बयान से असहमत हो सकते हैं। परंतु सच्चाई यही है कि इस्लाम और मुस्लिम समुदायों में सुधार की नितांत आवश्यकता है।

अन्य धर्मों की तरह इस्लाम के भी कई रूप है। अतिवादी राजनीतिक इस्लाम एक ऐसा रूप है, जिसकी कीमत स्वयं मुस्लिम समुदाय चुकाता आ रहा है। हमारे आस-पड़ोस और पश्चिमी एशिया के देशों पर नजर डालने से इसे आसानी से समझा जा सकता है।

ऐतिहासिक रूप से बदलते समय के साथ सभी धर्मों में विकास और परिभार्जन हुआ है। इससे ईश्वर के नाम पर होने वाले स्वधर्म त्याग, ईश-निंदा और हिंसा के दूषित विचारों का त्याग किया गया है। ईसाई धर्म का इतिहास धर्मयुद्धो पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति से भरा पड़ा है। हिंदुओं ने भी सती प्रथा और विधवा के बहिष्कार की कुप्रथाओं को छोड़ दिया है।

विद्वानो ने कहा है कि इस्लाम, मुस्लिमों को विकास और अनुकूलन के लिए प्रेरित करता है। बदलते परिदृश्य के साथ उन्हें न्याय, दयालुता, शांति और विवेक का रास्ता अपनाने को कहता है। राजनीति और रूढिवादी मौलवियों के स्वार्थजनित कोलाहल ने इस्लाम की आत्मा की आवाज को दबा दिया है।

प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामोफोबिया को भडकाने का आरोप लगाया। फ्रांसीसी राष्ट्रपति की निंदा की है। वहीं मलेशिया और तुर्की के राष्ट्रपति ने फ्रांस के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के विचारों को कोसा है। उनके ऐसे विचार बताते हैं कि शायद इस्लाम के नाम पर की जाने वाली हत्याएं ठीक कही जा सकती हैं। इससे तो उल्टे इस्लामोफोबिया का प्रसार अधिक होता है।

ईश-निंदा और अपने धर्म का त्याग करने वालों को मृत्यु दंड जैसे कठोर दण्ड देना केवल बहु सांस्कृतिक समुदायों में ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज का भी चलन है। इस प्रकार के कानून मुख्यतः मुस्लिम बहुल देशों में राजनीतिक असंतुष्टों के विरूद्ध लागू किए जाते हैं।

मुस्लिम समुदायों में लोकतंत्र, धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार, महिलाओं के अधिकार, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और अन्य संबद्ध विषयों पर खुलकर चर्चा की जानी चाहिए। 2011 का अरब स्प्रिंग, तानाशाही, अन्याय और कुशासन के विरूद्ध था, परंतु दुर्भाग्यवश मुस्लिम समुदाय में इस प्रकार की आवाजें दबकर रह जाती हैं।

पश्चिमी और तानाशाही मुस्लिम देशों के जटिल ताने-बाने ने सुधारों को और भी मुश्किल बना दिया है। वहाबी इस्लाम विचारधारा (इसका अनुयायी ओसामा बिन लादेन भी था) को संरक्षण देने वाले सउदी अरब का मित्र राष्ट्र अमेरिका है। फ्रांस जैसे अन्य कई पश्चिमी देशों ने उपनिवेशवाद के दौरान अनेक देशों का घोर शोषण किया है।

मैक्रों ने अल्जीरियाई स्वतंत्रता सेनानियों के विरूद्ध युद्ध को मानवता के विरूद्ध अपराध बताया। आज अल्जीरियाई और अन्य उत्तर अफ्रीकी लोग फ्रांसीसी नागरिक के रूप में एकीकृत हैं। फ्रेंच धर्मनिरपेक्षता में सामान्यतः धर्म के लिए कोई स्थान नही है। सार्वजनिक रूप से वह सिक्ख या यहूदियों या अन्य किसी धार्मिक समुदाय को धार्मिक चिन्ह रखने की अनुमति नही देता है। मुसलमानों के लिए इस्लाम का जैसा महत्व है, फ्रांस के लिए स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वैसा ही स्थान है।

भारत ने फ्रांस में हुई हत्याओं की निंदा करते हुए फ्रांसिसी जनता के प्रति सहयोग व्यक्त किया है। मुंबई जैसे कुछ एक स्थानों पर मुहम्मद साहब के कार्टूनों को लेकर कुछ मुस्लिमों ने विरोध प्रदर्शन किया है। इन कार्टूनों के प्रति नाराजगी दिखाने का अधिकार मुसलमानों को है। इसके विरूद्ध उन्हें शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का भी अधिकार है। लेकिन हत्या को स्वीकार नही किया जा सकता। भारतीय मुसलमानों को चाहिए कि वे जिस शिद्दत के साथ अपने अधिकारों की मांग करते हैं, उसी दृढ़ता के साथ इन हत्याओं का भी विरोध करें।

आज अधिकांश देशों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर में दिए गए मानवाधिकारों पर आधारित नागरिक मूल्यों और सह-अस्तित्व की समावेशी प्रणाली तैयार कर ली है। हमारे संविधान में बहुलता, समावेशी समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के मूल्य निहित हैं। इस दृष्टि से भारतीय मुसलमानों को सामाजिक सुधार लाने और परिर्वतन का नेतृत्व करने के लिए सुविधाजनक सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। लेकिन यह तभी संभव हो सकता है, जब हम धार्मिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक घृणा की राजनीति से दूर रहेंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित ज़ाकिया सोमण के लेख पर आधारित। 3 नवम्बर, 2020