ग्रीन-हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत
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भारत को अपनी ऊर्जा अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिए हाइड्रोजन की विशाल क्षमता को पहचानने की आवश्यकता है। विशेष रूप से ऊर्जा गहन क्षेत्रों और लंबी दूरी के परिवहन के लिए ग्रीन हाइड्रोजन जैसी कम उत्सर्जक, टिकाऊ और कुशल ऊर्जा के आवंटन को बढ़ाने की जरूरत है। इससे जुड़े कुछ तथ्य –
- ज्ञातव्य हो कि भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड ने स्वदेशी एल्केलाइन इलैक्ट्रोलाइजर तकनीक के माध्यम से ग्रीन हाइड्रोजन के आउटपुट को बढ़ाने के लिए भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के समझौता करार किया है।
- तेल संशोधन संयंत्र, पहले से ही क्रूड रिफाइनिंग प्रक्रिया में डी-सल्फराइजेशन के लिए बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन का उत्पादन करते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया को प्राकृतिक गैस से करने में कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है।
- इस प्रक्रिया से प्राप्त ग्रे हाइड्रोजन को सीएनजी के साथ मिश्रित किया जा सकता है। बड़े-बड़े शहरों में बस जैसे सार्वजनिक वाहनों में उपयोग होने वाली ऐसी सीएनजी, या एच-सीएनजी से टेलपाइप के द्वारा होने वाले कार्बन मोनो ऑक्साइड के प्रदूषण को 70% तक कम किया जा सकता है।
- हमारा लक्ष्य, इलेक्ट्रोलिसिस में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाना है। परंतु यह तकनीक बहुत अधिक ऊर्जा की मांग करती है। यही कारण है कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन जैसे रिफाइनर, प्रक्रिया के लिए पेटेंट स्टीम-रिफॉर्मिंग तकनीक का उपयोग करते हैं।
हमारा अंतिम ध्येय, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ाना और ईंधन के विकल्प के रूप में इसका विस्तार करना है। इसका कारण है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को पावर देने वाले लिथियम का भारत में भंडार नहीं है। इसलिए हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए लागत प्रभावी धातु ऑक्साइड बैटरी की दिशा में नीति बनाने की आवश्यकता है। आने वाले समय में प्रमुख धातुओं के लिए अन्य देशों पर अपनी निर्भरता कम कर सकने वाली नीति की भी जरूरत होगी। उम्मीद की जा सकती है कि राजनैतिक नेतृत्व इस दिशा में जल्दी ही कदम उठाएगा।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 दिसम्बर, 2021