एफएमसीजी वितरकों को विकल्प ढूंढने चाहिए
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एफएमसीजी या फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स में बहुत से पारंपरिक वितरक काम करते रहे हैं। लगभग 85% एफएमसीजी सामान पारंपरिक तरीके से वितरित किए जाते हैं। इस पूरी श्रृंखला में वितरक, थोक विक्रेता और स्टॉकिस्ट ऐसे लोग होते हैं, जो उत्पादकों और खुदरा विक्रेताओं के बीच मध्यस्थ का काम करते है।
समस्या क्या है ?
एफएमसीजी के क्षेत्र में आ गई बड़ी-बड़ी कंपनियों ने सरकार से छूट प्राप्त कर ली है कि वे सीधे उत्पादक से सामान लेकर उपभोक्ताओं को बेच सकती हैं। इससे उत्पाद की लागत कम हो जाती है। स्पष्ट है कि उपभोक्ता का झुकाव इनकी ओर हो रहा है।
पारंपरिक वितरकों की मांग –
ये वितरक चाहते हैं कि सरकार इन्हें भी बड़ी कंपनियों की तरह छूट दे, ताकि जिससे ये भी वस्तुयें उत्पादक से सीधे खरीदकर उपभोक्ता तक पहुँचा सकें। इससे वे आधुनिक रिटेल इकाइयों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो सकेंगे।
वास्तविकता क्या है ?
आधुनिक खुदरा व्यापारी न केवल बड़े पैमाने के कारण, बल्कि अपनी परिष्कृत लॉजिस्टिक आपूर्ति श्रृंखला के कारण भी उत्पाद की लागत को कम करने में सफल होते हैं। इस लाभ को वे अपने उपभोक्ताओं से बांटते हैं, इसलिए उपभोक्ता उनकी ओर आकर्षित होते हैं। जबकि पारंपरिक वितरण में केवल वॉल्यूम के आधार पर छूट दी जा सकती है।
अंततः खुदरा क्षेत्र में चल रहे तकनीकी प्रतिमान के बदलाव का विरोध करने के बजाय, इसे अनुकूलित किया जाना चाहिए। पारंपरिक वितरक भी संगठित होकर अपने दम पर ऐसी लाजिस्टिक आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण करें, जो आधुनिक खुदरा वितरकों से प्रतिस्पर्धा कर सके। इस माध्यम से वे रोजगार भी बचा सकेंगे, और देश की आर्थिक प्रगति में योगदान भी दे सकेंगे।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 दिसम्बर, 2021