एक न्यायाधीश के राजनीति में आने के मायने
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हाल ही में चुनावी मौसम में पश्चिम बंगाल में कुछ असामान्य घटित हुआ है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने अपने पद से इस्तीफा देने के कुछ ही घंटों बाद भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की घोषणा की। किसी न्यायाधीश के ऐसे एक्शन के प्रभावों से जुड़े कुछ बिंदु –
- किसी समय एक भाजपा नेता ने कहा था कि “सेवानिवृत्ति से पहले के फैसले सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरियों से प्रभावित होते हैं।”
- न्यायाधीश के इस्तीफे को भी लेकर ऐसे सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने अपनी इसी योजना के चलते पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी को अपने निर्णयों से कई बड़े झटके दिए हैं।
- पद पर रहते हुए दिए गए उनके आदेशों का न केवल राज्य के हजारों नौकरी चाहने वालों के भाग्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ा, बल्कि वे 2021 से राज्य में राजनीतिक विमर्श पर भी हावी रहे। उन्होंने राज्य के सत्तारूढ़ दल तृणमूल पर कई तीखे हमले किए हैं।
किसी न्यायाधीश के इस प्रकार के आचरण का न्यायपालिका के कामकाज पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। और यह गलत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है, क्योंकि न्यायाधीशों को सार्वजनिक आलोचना से मुक्त माना जाता है। राजनीतिक पूर्वाग्रह रखने वाला कोई भी न्यायाधीश अपने पद से जुड़े कर्तव्यों के साथ पूरा न्याय नहीं कर सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 7 मार्च, 2024