एक मामले में न्यायालय का सख्त रवैया
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लोकतंत्र में न्याय का बहुत महत्व होता है। यही कारण है कि इसे एक स्तंभ के रूप में पहचाना गया है। हाल ही में बिलकिस बानो मामले में उच्चतम न्यायालय ने इसे सिद्ध भी कर दिया है। मामले से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदु –
- 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गर्भवती बिलकिस बानो का सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या की गई।
- इस जघन्य मामले के 11 दोषियों को समय से पहले ही रिहा कर दिया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र व गुजरात सरकार से उन दस्तावेजों की मांग की है, जिनके आधार पर दोषियों की जल्दी रिहाई की गई है।
- गुजरात सरकार ने उम्रकैद के सजायाफ्ता इन दोषियों की रिहाई से जुड़े दस्तावेज दिखाने के आदेश का विरोध किया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 123 और 124 के तहत सरकार को दस्तावेज का खुलासा नहीं करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। खुलासा नहीं करने का प्रावधान उस संदर्भ में है, जब इससे ‘सार्वजनिक हित’ को नुकसान पहुंचने का अंदेशा हो।
- सर्वोच्च न्यायालय का कहना है। कि यह मामला बलात्कार और हत्या के सामान्य मामले से भिन्न है। इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए। यह भी कहा गया है कि समाज को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने वाले जघन्य अपराधों की सजा में छूट पर विचार करते समय सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए। न्यायलय ने गुजरात सरकार को एक प्रकार से चेतावनी देते हुए कहा है कि दस्तावेज प्रस्तुत न करने को न्यायालय की अवमानना मानते हुए कार्यवाही की जा सकती है।
न्यायालय का सरकार के प्रति सख्त रवैया प्रशंसनीय कहा जा सकता है। ऐसे मामलों में सरकार के नरम रवैये का सामाजिक प्रभाव गलत पड़ता है। इससे न्याय की धारणा को चोट पहुँचती है।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 20 अप्रैल, 2023