
एक अकेला जिहादी
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आतंक जितना बढ़ता है, आतंक के आगे झुकने से इंकार करने वाले की छवि उतनी ही मजबूत होती जाती है। यह वक्तव्य विकसित होती जा रही आतंकी रणनीतियों के संदर्भ में कहा जा सकता है।
अमेरिका के न्यू आर्लियंस में नए साल का उत्सव मना रहे 15 लोगों को सड़क पर मार दिया गया। इससे पहले जर्मनी की एक ऐसी ही घटना में पांच लोगों की हत्या और 200 लोगों को घायल कर दिया गया। कहने का तात्पर्य यह है कि आतंक के विरूद्ध जितने भी एक्शन लिए जाते हैं, वे सीमित हों। बदलते समय के साथ सब सीमित हो जाते हैं। आतंक का कहर ढहाने के लिए आतंकवादी नए रास्ते ढूंढ लेते हैं।
उक्त घटनाओं को अंजाम देने वाले लोग नाम से मुस्लिम संप्रदाय के लगते हैं, लेकिन वास्तव में उनका धर्म नहीं बल्कि वह जहरीला विचार आतंकवाद है, जो उन्हें ऐसा करने को बाध्य कर देता है। जर्मनी की घटना को सउदी के एक डॉक्टर ने अंजाम दिया, जो 2006 से वहाँ रह रहा था, और स्वयं को नास्तिक कहता था। अमेरिकी घटना के पीछे वहीं जन्में और पले-बढ़े किसी जब्बार का हाथ था।
ऐसी घटनाओं से अमेरिका के ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन‘ या एमएजीए जैसे राष्ट्रवादियों को स्वदेशी एजेंडा बढ़ाने का अवसर भी मिल जाता है। इसमें नस्लीय दुर्वव्यवहार और प्रतिरोध बढ़ता है। कुल मिलाकर अशांति पैदा होती है।
आतंक एक वैश्विक कारोबार है। जरूरी नहीं कि यह जर्मनी या अमेरिका तक सीमित हो। यह भी जरूरी नहीं कि यह विस्फोटों और बंदूकों तक सीमित हो। इसके कई चेहरे और मुखौटे हो सकते हैं। इसके अनेक रूपों के विरूद्ध तैयारी रखना हमारा काम है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 3 जनवरी, 2025