डिजिटल सेवाओं तक पहुँच का मौलिक अधिकार

Afeias
10 Jun 2025
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हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने डिजिटल सेवाओं तक पहुँच को एक मौलिक अधिकार बताया है। न्यायालय ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 से जोड़ते हुए कहा है कि ‘आवश्यक सेवाओं, शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक अवसरों तक पहुँच डिजिटल सेवाओं के माध्यम से तेजी से बढ़ रही है—- डिजिटल कमी को भरना अब नीतिगत विवेक का मामला नहीं है, बल्कि सम्मान के साथ जीवन जीने के लिए जरूरी है।‘

कुछ तथ्य –

  • सरकार का दावा है कि देश में टेली-डेंसिटी या टेली घनत्व 86% है, लेकिन ग्रामीण भारत का केवल 59% हिस्सा ऑनलाइन है।
  • केवल 4.5% भारतीयों के पास वायर्ड ब्रॉडबैंड है।
  • पिछले वर्ष भारत ने 84 बार इंटरनेट शटडाउन किया था। इससे मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता प्रभावित हुए थे।

चुनौतियां –

  • सरकार को डिजिटल सेवाओं को सार्वभौमिक रूप से किफायती बनाने के लिए नीति में बदलाव करना होगा। 
  • सेलुलर नेटवर्क शुरू करने के तरीके का पुर्नमुल्यांकन करना होगा। फिलहाल, भारत सरकार स्पेक्ट्रम लागत और दूरसंचार राजस्व को साझा करती है। विभिन्न विकास कार्यों के लिए उपयोग करती है। इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था का विकास धीमा पड़ जाता है।
  • अर्थव्यवस्था में डिजिटल विभाजन गहरा है। इसे पाटने के लिए पूंजी निवेश में राजनीति को बाधा न बनने दिया जाए।

डिजीटल सेवा की कमी से जूझ रहे क्षेत्रों को न्यायालय के इस निर्णय से मदद मिलेगी। सौभाग्य से, दूरसंचार प्रौद्योगिकी तेजी से बढ़ रही है। इसकी कानूनी व्याख्या से सरकार और बाजार, दोनों की क्षमता बढ़ेगी।

विभिन्न समाचार पत्रों आधारित। 01 मई, 2025