देश के विकास का अगला कदम : स्वास्थ्य क्षेत्र

Afeias
29 Sep 2020
A+ A-

Date:29-09-20

To Download Click Here.

भारत के स्वास्थकर्मियों और स्वास्थसेवा प्रदाताओं को विश्व में बहुत सफलता मिलती रही है। चाहे वह फार्मेसी हो, डॉक्टर हो या नर्सें; भारत ने यूरोप और अमेरिका को सफलतापूर्वक इनकी आपूर्ति की है। विडंबना है कि ऐसे देश की 70% स्वास्थ्य सेवा निजी अस्पतालों के भरोसे चल रही है। हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में स्वास्थ्य पर मात्र 1.13% व्यय किया जाता है। स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च का 62% , लोग अपनी जेब से खर्च करते हैं। यहाँ 98% स्वास्थ्य सेवा ऐसे संस्थान उपलब्ध कराते हैं, जो 10 से भी कम लोगों को रोजगार देते हैं। लोगों के स्वास्थ रिकार्ड मैनुअल है। कुल मिलाकर इस क्षेत्र में अनेक चुनौतियां मुँह बाए खडी हैं –

  1. देश में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत खराब है। ऐसा देखा गया है कि सशक्त प्राथमिक स्वास्थ्य वाले देशों की स्थिति बहुत अच्छी रहती है। असमानताएं कम और देखभाल पर कम खर्च होता है। इस दिशा में हमें कदम उठाने की जरूरत है।
  • देश में 2022 तक डेढ़ लाख प्राथमिक चिकित्सा और स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण करने की जरूरत है। इस दिशा में पहले से विद्यमान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और उप-केंद्रों को रूपांतरित किया जाना है।
  • फिलहाल हमारी प्राथमिक सेवाएं उपचारात्मक सेवाओं पर ही काम करती हैं, जो रोग पर ही केंद्रित होती हैं। भविष्य में इन्हें एकीकृत और व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
  • जिला एवं तहसील स्तर के अस्पतालों में उच्च स्तरीय सुविधांए बढ़ाने की जरूरत है।
  1. देश में चिकित्सकों और स्वास्थकर्मियों की बहुत कमी है। यह कमी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। प्रति एक हजार की जनसंख्या पर मात्र 7 चिकित्सक ही मौजूद हैं।
  • देश के मेडिकल कॉलेजों में सीट बढ़ाई जानी चाहिए।
  • मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए भूमि, भवन-निर्माण तथा सामग्री-उपकरण आदि की कीमत को युक्तिसंगत बनाया जाए।
  • मेडिकल कॉलेज हर जिले में स्थापित हों, जिससे स्थानीय युवाओं को चिकित्सकीय शिक्षा मिल सके, और आगे चलकर वे स्थानीय जनता की सेवा कर सकें।
  1. कैंसर जैसे गैर-संक्रामक रोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। मानसिक रोग भी बढ़ रहे हैं। ऐसे रोगियों की प्रशामक (पैलिएटिन) देखभाल के लिए इकाइयों की बहुत जरूरत है।
  1. मानव संसाधन को कौशलयुक्त बनाकर उनका पूरा उपयोग किया जा सके।
  • छत्तीसगढ़ राज्य ने तीन वर्षीय सामुदायिक मेडिकल कोर्स की शुरूआत की है।
  • ब्रिटेन थाईलैण्ड और अफ्रीकी देशों में नर्सों को प्राथमिक चिकित्सा की अनुमति है।
  • भारत में दंत चिकित्सकों और आयुष डॉक्टरों को ब्रिज कोर्स के बाद सामुदायिक चिकित्सक की भूमिका दी जा सकती है।
  1. स्वास्थ्य संबंधी शोध एवं अनुसंधान के लिए पर्याप्त फंडिंग की आवश्यकता है। निदान, दवाओं, चिकित्सा पद्धतियों, मृत्यु-दर और रोगों की निगरानी के लिए हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।

स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्त रखने के लिए उसके डिजीटलीकरण की आवश्यकता है। इसके लिए तकनीक को साथ लेकर चलना ही होगा।

भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र से आर्थिक विकास की डोर बंधी हुई है। फार्मा, बायोफार्मा, अस्पतालों आदि में रोजगार के बहुत अवसर हैं। इनके माध्यम से अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन को व्यापक रूप से सुधारा जा सकता है।

टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 11 सितम्बर, 2020