देश के शहरों को सशक्त बनाने की जरूरत

Afeias
10 Apr 2024
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सन् 1992 में 73वें और 74वें संविधान संशोधनों की मदद से शासन के तीसरे स्तर को संवैधानिक दर्जा दिया गया, यानी शहरी और ग्रामीण स्थानीय सरकारों को। संविधान के अनुच्छेद 280 में संशोधन करके वित्त आयोग के कार्यक्षेत्र का विस्तार किया गया, ताकि अतिरिक्त फंड को एक राज्य के समावेशी फंड में स्थानांतरित किया जा सके और पंचायतों तथा स्थानीय निकायों की जरूरत को अनुदान से पूरा किया जा सके। परंतु शहरों में समस्याएं बनी हुई हैं, जैसे कि –

  • शहरी इलाकों के 55 करोड़ लोगों की शहरों और कस्बों के प्रबंधन और विकास में कोई खास भूमिका नहीं होती, जबकि वे वहीं रहते हैं और उन्हें नगर निकायों में मताधिकार भी हासिल है।
  • उनमें से कुछ ही लोग ऐसे हैं, जिनके नगर निकाय राजकोषिय दृष्टि से स्वतंत्र हैं, और जो नगर निकाय की गतिविधयों को पूरा कर सकते हैं।
  • अफसरशाहों को मुख्य प्रशासक के रूप में नियुक्त किया जाता है और वही शहरों के प्रबंधन कार्यक्रम तय करते हैं।
  • शहरी विकास कार्यक्रमों का निर्धारण केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जाना जारी है।

शहरों को सशक्त बनाने के लिए सुझाव –

  • जरूरत इस बात की है कि निर्णय लेने की जवाबदेही उस स्तर पर होनी चाहिए जहाँ इसका प्रभाव सबसे अधिक होता है। 
  • नगर निकायों को वित्तीय आवश्यकताओं के लिए उच्च स्तर पर प्राधिकारों पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
  • नगर निकायों का संचालन मॉडल नागरिकों की संबद्धता वाला होना चाहिए। 
  • लक्ष्य शहरी शासन को लोकतांत्रिक बनाना होना चाहिए। निर्वाचित राज्य सरकार के पास उन शहरों के राजनीतिक अधिकार होते हैं, जिन पर अक्सर अफसरों का शासन होता है।
  • न केवल स्थानीय लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढाँचे को शामिल करने के लिए बल्कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय जरूरतों के साथ उनका एकीकरण करने के लिए नगर निकाय विकास योजना को नया स्वरूप प्रदान करने की आवश्यकता है, उदाहरणार्थ – शहरों में हरा-भरा क्षेत्र तैयार करना, उच्च तापमान से निपटने का इंतजाम करना और जलवायु अनिश्चितता से निपटना आदि।
  • रहवासियों की सेवा करने वाली क्षेत्रीय संस्था के रूप में इसे उन बातों पर ध्यान देना होगा जिनके चलते ग्रामीण रहवासी शहरों की ओर आते हैं। इसमें काम के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति से जुड़ी बेहतर सेवाएँ शामिल हैं।

नगर निकायों को अधिकार संपन्न बनाया जाए, उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान की जाए और उनके काम-काज को लोकतांत्रिक बनाया जाए, क्योंकि शहरी शासन को सशक्त बनाना न केवल शहर के लिए ही जरूरी है, बल्कि राष्ट्रीय विकास के लिए भी आवश्यक है। इसका भविष्य तकनीकी विकास, निर्यात आधारित वृद्धि, डिजिटल सेवा विस्तार और अन्य ऐसी पहलों पर निर्भर है।

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