शहरों को बेहतर बनाने के लिए

Afeias
14 Jul 2016
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Date: 14-07-16

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भारतीय शहरों के वार्षिक जनाग्रह सर्वे आॅफ इंडियाज़ सिटी सिस्टम (ASICS) ने हाल में अपनी तीसरी रिपोर्ट जारी की है।

इसमें 21 भारतीय शहरों को शामिल किया गया है। 10 के पैमाने पर किसी भी भारतीय शहर को 4.2 से ऊपर अंक नहीं मिल पाए, जबकि लंदन को 9.1 और न्यूयार्क को 9.2 अंक मिले। लंदन और न्यूयार्क जैसे शहरों को अधिक अंक मिलने का कारण इन शहरों में उच्चस्तरीय सुविधाओं का होना है। ये सुविधाएं नागरिकों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाती हैं।

वर्तमान सरकार के मेक इन इंडिया, डिजीटल इंडिया तथा स्मार्ट सिटी मिशन जैसे कार्यक्रमों की सफलता के लिए हमारे शहर अह्म् हैं। उन्हें और कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।

शहरों की वर्तमान स्थिति से जुड़े कुछ तथ्य

  • सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 8000 शहर हैं।
  • इन शहरों में 50 से अधिक शहरों की जनसंख्या 10 लाख से ऊपर है।
  • इस हिसाब से शहरों की जनसंख्या लगभग 40 करोड़ है, जिसके सन् 2050 तक बढ़कर 80 करोड़ हो जाने की संभावना है। उस समय तक देश की 50 प्रतिशत आबादी (वर्तमान में 30 प्रतिशत) शहरों में रहने लगेगी।
  • शहरों को बेहतर बनाने, उनमें निवेश बढ़ाने और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए उनका विकसित होना बहुत जरूरी है।
  • शहरों को बेहतर बनाने के लिए चार तथ्य महत्वपूर्ण हैं-
  1. शहरों की योजना एवं स्वरूप
  2. नगर-निगम की क्षमताओं को बढाना
  3. शहर का राजनैतिक नेतृत्व, तथा
  4. पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और नागरिकों की भागीदारी।
    • शहरों के विकास के लिए सबसे पहले आने वाले 20-25 वर्षों को ध्यान में रखते हुए उनका एक ब्लू प्रिंट तैयार किया जाना चाहिए। उनके आर्थिक स्वरूप तथा पर्यावरण को स्थानीय आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। इसके लिए योजना बनाने वाले आधुनिक संस्थान और नगर प्रबंधकों (Planners) की आवश्यकता होगी।
    • किसी शहर की नगर-निगम की क्षमता उस शहर के विकास में बड़ी भूमिका निभाती है। बेंगलूरू एवं न्यूयार्क की जनसंख्या 90 लाख है। न्यूयार्क में लगभग 4 लाख नगर निगम कर्मचारी है, जबकि बेंगलूरू में 30 हजार। इसी तरह से न्यूयार्क के मानव संसाधन विभाग में लगभग 5 प्रतिशत व्यक्ति अनुभवी एवं योग्य प्रबंधक हैं, जबकि बेंगलूरू में मात्र 5 है।
    • नगर निगमों को वित्तीय सहायता के नाम पर पूरे बजट का 1 प्रतिशत ही मिलता है। आर्थिक पक्ष की कमजोरी बहुत से विकास कार्यों में बाधा डालती है। नगरों में मानवीय एवं आर्थिक क्षमताओं, दोनों का ही महत्व है। नगर निगमों के अलावा नगर विकास प्राधिकरण, जल प्राधिकारण, परिवहन निगम, मेट्रो रेल, पुलिस, अग्निशमन सेवाएं एवं आवासीय प्राधिकरण के सहयोग की आवश्यकता होती है।
    • राजनैतिक नेतृत्व किसी भी शहर के विकास की दिशा में आमूलचूल परिवर्तन ला सकता है। शहरों में मेयर को चुनने का अधिकार सीधे जनता के पास होना चाहिए। उसका कार्यकाल पाँच वर्ष का हो। वह शक्तिसंपन्न तथा जनता के प्रति उत्तरदायी हो। इसके लिए संविधान के 74 वें संशोधन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
    • शहरों के सभी विभागों के कामकाज का लेखा-जोखा कुछ निश्चित समय के बाद जनता के समक्ष रखा जाना चाहिए। इससे नगर प्रबंधन में पारदिर्शिता आएगी। प्रबंधकों पर उत्तरदायित्व बढ़ेगा एवं जनता की भागीदारी भी बढ़ेगी। गाँवों की ग्राम सभाएं जन-भागीदारी का एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

जनाग्रह वार्षिक सर्वेक्षण से हमारे शहरों की वास्तविक स्थिति एवं उनके बेहतर विकास के लिए एक एजेण्डा मिला है।

 

टाइम्स आॅफ इंडिया में श्री नारायण मूर्ति

स्वाती एवं रमेश रामनाथन के लेख पर आधारित

 

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