देखभाल क्षेत्र के माध्यम से महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर
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हाल के दो वर्षों में देखभाल सेवाओं की मांग आसमान छूने लगी है। इस क्षेत्र को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाने लगा है। धारणीय विकास लक्ष्यों की प्रतिबद्धताओं और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की शताब्दी के उपलक्ष्य में हुई घोषणा में देखभाल को शामिल किया जा रहा है।
देखभाल के काम को वैतनिक और अवैतनिक जैसी दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। साथ ही इसमें बच्चे को खाना खिलाना या बीमार सदस्य की देखभाल करने जैसी प्रत्यक्ष गतिविधियां शामिल हैं। अप्रत्यक्ष देखभाल गतिविधियों में खाना बनाना और सफाई आदि शामिल होती हैं। भारत में दोनों ही प्रकार की गतिविधियों में मुख्यतः महिलाएं संलग्न हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की नई रिपोर्ट के अनुसार –
- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक ही ‘केयर एट वर्क : इन्वेस्टिंग इन केयर लीव एंड सर्विसेज फॉर ए मोर जेंडर इक्वल वर्ल्ड ऑफ वर्क’ रखा है। इससे इस क्षेत्र की बढ़ती मांग और महत्त्व का पता चलता है।
- यह रिपोर्ट मातृत्व, पितृत्व और विशेष देखभाल के लिए अवकाश प्रदान करने के महत्व पर प्रकाश डालती है।
- स्तनपान जैसी देखभाल सेवाओं के लिए समय, आयु सुरक्षा और स्थान प्रदान करने वाले कार्यस्थल से सकारात्मक पोषण और स्वास्थ्य परिणामों को भी दर्शाता है।
- रिपोर्ट यह भी बताती है कि कैसे चाइल्डकेयर और बुजुर्ग देखभाल सेवाओं के लिए मौजूदा नीतियों और सेवा प्रावधानों में अंतराल को पाटने से बाल विकास और बुढापे की गरिमा को संभाला जा सकेगा।
- इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए अधिक और बेहतर रोजगार के अवसर उत्पन्न करने पर भी रिपोर्ट प्रकाश डालती है।
एक अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में निवेश के जरिए लगभग 30 करोड़ रोजगार के वार्षिक अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं।
भारत की स्थिति –
- एक अनुमान के अनुसार भारत में 39 लाख घरेलू कामगारों में से 26 लाख महिलाएं हैं। इन्हें औपचारिक सुरक्षा देने हेतु कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीडन (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम और कई राज्यों में न्यूनतम मजदूरी अनुसूची जैसे प्रयास किए गए हैं।
- भारत के लिए धारणीय विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए देखभालकर्मियों की पहचान करना, और घरेलू व बच्चों की देखभाल करने वाले कर्मचारियों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- अवैतनिक देखभाल कार्य का संबंध श्रम बाजार की असमानताओं के अंतर्गत आता है। भारत के नीति निर्माण में इस पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। यहाँ की वैतनिक आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को भी अभी अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है। उन्हें श्रमिकों के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है।
- उद्योगों और संस्थानों में काम करने वाली महिलाओं के लिए क्रेच सुविधा को अनिवार्य बनाया गया है। परंतु इसके सही डेटा का पता नहीं है। अतः भारत में देखभाल सेवाओं के क्षेत्र में उपलब्धता, पहुंच, सामर्थ्य और गुणवत्ता में सुधार की बहुत गुंजाइश है।
- फिलहाल, भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1% देखभाल क्षेत्र में निवेश करता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, वैतनिक या अवैतनिक, दोनों ही प्रकार के देखभाल कार्य, मानव के कल्याण और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसलिए नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों व संबंधित हित धारकों के परामर्श से सरकार को बेहतर देखभाल नीतियों, सेवा प्रावधानों और देखभाल श्रमिकों के लिए एक रणनीति और कार्ययोजना बनानी चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित डेग्मर वॉल्टर के लेख पर आधारित। 11 अप्रैल, 2022