साइबर संसार में ‘ट्रोलिंग’ और उससे जुड़े कानून
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हमारे रोजमर्रा के जीवन में साइबर जगत बहुत महत्वपूर्ण हो चला है। विज्ञान की उन्नति के प्रत्येक चरण के साथ उसके अच्छे और बुरे पक्ष जुड़े हुए हैं। इसी के तहत सोशल मीडिया पर ‘ट्रोलिंग’ भी एक पक्ष है। हाल ही में हद तब हो गई, जब एक माँ ने ट्रोलिंग के चलते आत्महत्या कर ली।
आजकल लोग अपने विचार, डेटा, सोच और नजरिए को बिना सोचे-समझे इंटरनेट मीडिया पर डाल रहे हैं। इसमें ट्रोलिंग भी एक तरीका है, जिसमें सामने वाले व्यक्ति को बिना सोचे-समझे अपशब्द कहे जाते हैं। ऐसा करते हुए यह भी नहीं सोचा जाता कि व्यक्ति-विशेष के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? क्योंकि लोगों को मालूम है कि वे अनीतिपूर्ण हमले करने के बावजूद कानूनी गिरफ्त से बच सकते हैं।
देश में सन् 2000 का सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट है। लेकिन वह न तो ‘ट्रोलिंग’ शब्द को पारिभाषित ही करता है, और न इस संबंध में कोई कानूनी समाधान देता है। भारतीय न्याय संहिता में भी इसकी कोई चर्चा नहीं है।
फिलहाल एक सीमा तक इससे बचने के लिए सोशल मंच प्रदान करने वाली कंपनी से शिकायत करना ही एकमात्र समाधान है। आईटी रूल्स 2021 के तहत सेवा देने वाली कंपनी ट्रोलर्स के सोशल अकाउंट पर 15 दिनों में कार्रवाई करने के लिए बाध्य है।
सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा-87 केंद्र सरकार को इस कानून के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तमाम प्रावधान अपनाने का अधिकार देती है।
ट्रोलिंग के ज्यादातर मामलों में ट्रोलर्स वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) के माध्यम से अपनी पहचान छुपा लेते हैं। अतः इनको पकड़ने के लिए खास उपाय करने होंगे। साथ ही, आम लोगों को भी साइबर सुरक्षा को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाहिए। तभी हम साइबर अपराध का शिकार बनने से बच सकेंगे।
‘हिंदुस्तान’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 मई 2024