बादल फटना (Cloud Burst)
Date: 22-08-16
To Download Click Here.
प्रत्येक वर्ष बादल फटने की अनेक घटनाओं के कारण जानमाल की अत्यधिक हानि सुनने में आती है। हम इसके कारण व बचाव के उपायों पर एक नजर डालते हैं।
बादल फटना क्या है?
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार अगर 10 Km. X 10 Km. के क्षेत्रफल में एक घंटे में 10 cm से ज्यादा वर्षा दर्ज की जाए, तो उसे बादल फटना कहते हैं। गाँव-देहात में सामान्यतः वर्षा मापने के उपकरण नहीं होते। अतः कम समय में भारी बारिश से जान-माल की अत्यधिक हानि को मौसम विभाग बादल फटने की घटना करार देता है।
बादल फटने की घटनाएं अधिकतर पर्वतीय क्षेत्रों में क्यों होती हैं?
बादल फटने की घटनाएं मैंदानी इलाकों में भी होती हैं। तथापि पर्वतीय क्षेत्रों में इसके होने की संभावना अधिक होती है। इकट्ठे हुए वर्षा के बादल निचले क्षेत्रों से आने वाली गर्म वायु के दबाव से और ऊपर चले जाते हैं। इससे इन बादलों में पानी की नई बूंदें जुड़ जाती हैं, जो पहले स्थित बूंदों के आकार को बहुत बढ़ा देती हैं। एक सीमा के बाद वर्षा की बूंदें इतनी भारी हो जाती हैं कि बादल उन्हें थाम नहीं पाते। फलस्वरूप ये बड़ी बूंदें बहुत भारी मात्रा में वर्षा का जल लेकर नीचे गिर जाती हैं।
चूंकि पर्वतीय क्षेत्रों में गर्म वायु धारा ऊध्र्व बहती है, इसलिए इन क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं अधिक होती हैं।
बादल फटने का प्रभाव
- इस वर्षा से पर्वतीय क्षेत्रों में जान-माल की बहुत हानि होती है। सन् 2013 में उत्तराखंड में बादल फटने की वजह से लगभग 5000 लोग मारे गए थे।
- पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन, बाढ़, घर एवं अन्य प्रतिष्ठानों के बह जाने से जीवन तबाह हो जाता है।
बादल फटने की श्रृंखला
- बादल फटने की घटना कहीं एक बार और कहीं लगातार श्रृंखला में भी हो सकती है। उत्तराखंड में यह श्रृंखलागत रही।
क्या बादल फटने की भविष्यवाणी की जा सकती है?
- बादल फटने की घटना अधिकतर बहुत छोटे से क्षेत्रफल में घटती है। किसी क्षेत्र विशेष के लिए भविष्यवाणी कर पाना बहुत मुश्किल होता है। फिर भी डोपलर राडार की मदद से छः घंटे और कभी-कभी 12-14 घंटे पहले भविष्यवाणी संभव हो जाती है।
- दुर्भाग्यवश उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में डोपलर राडार लगे ही नहीं हैं
क्या बादल फटने की घटना लगातार बढ़ रही है
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले एक दशक से बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। आगे भी इनके बढ़ने की संभावना है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में अमिताभ सिन्हा के लेख पर आधारित