रुपए की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार पर छोड़ देना कितना उचित है?
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तीन साल पहले भारत सहित सभी उभरते हुए बाजारों के लिए एक मुश्किल भरा दौर आया था। इसका कारण अमेरिकी सरकार का ब्याज दर में वृद्धि करना था। इसके चलते दुनिया भर में निवेश किए गए डॉलर अमेरिका में निवेश के लिए वापस लिए जाने लगे थे। इसका जबर्दस्त प्रभाव भारतीय सेंसेक्स पर पड़ा। रुपए की कीमत 55 से गिरकर 68 प्रति डॉलर हो गई। डॉलर को रोकने के लिए भारत सरकार को अपनी ब्याज दर बढ़ानी पड़ी और उसने किसी हद तक गिरते रुपए को संभाला। प्रवासी भारतीयों ने अपना निवेश भारत में ही रखा और अब उसे वापस लेने का समय आ गया है। यह मुद्रा लगभग 26 अरब डॉलर बैठती है। अगर प्रवासी भारतीयों ने डॉलर के पुनर्निवेश की जगह उसे वापस ले ही लिया, तो रुपए की कीमतों में गिरावट निश्चित है। रुपए की कीमत को लेकर कई सवाल उठ सकते हैं, जैसे, रुपए के गिरने से हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आयात-निर्यात पर क्या प्रभाव होगा? वगैरह, वगैरह।
- हमारे देश का निर्यात लगभग 20 महीनों से बहुत सुस्त चल रहा है। यदि रुपए की कीमत और गिरती है, तो यह निर्यातकों के लिए खुशी का अवसर होगा। इससे हमारे निर्यात बाजार में तेजी आ जाएगी।
- दूसरी ओर आयातकों के लिए यह एक बुरी खबर होगी। स्पष्ट तौर पर आयात करने वालों को ज्यादा कीमत चुकानी होगी और उनके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है।
- कुछ देशों ने अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अपनी मुद्रा की कीमत में गिरावट भी है। परंतु इससे उनके आयात पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा।
बाजार के रूख को देखते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि रुपए की उच्च कीमत पर भी हमारे आयात में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं दर्ज की जा रही थी। उल्टे गिरावट का दौर ही रहा। इसी प्रकार रुपए की कीमत गिरने पर निर्यात बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है।
निर्यात के न बढ़ने के अन्य कई कारण रहे हैं। उत्पादकता में कमी, सरकारी औपचारिकताएं एवं परिवहन की उच्च दरों के कारण हम चीन से बहुत पीछे हैं। अगर विश्व बैंक की सालाना बिजनेस रिपोर्ट को देखें, तो पता लगता है कि निर्यात प्रक्रिया में सबसे तेज गति हंगरी की है, जहाँ एक घंटे में ही दस्तावेज और परिवहन संबंधी प्रक्रिया पूरी हो जाती है। इस दौड़ में चीन 96वें और भारत 133वें स्थान पर है।दूसरे, जहाँ चीन में माल भाड़े की दर 1 है, वहीं भारत में यह 3.68 है। यात्रियों को भाड़े में रियायत देने के कारण भारतीय सरकार को निर्यातकों पर माल भाड़े की दर बढ़ानी पड़ती है। अर्थव्यवस्था के त्वरित विकास के लिए सुधार का होना बहुत आवश्यक है। भारत में ऐसा होने में समय लगेगा।
फिलहाल, प्रवासियों के निवेश खत्म होने पर अगर रुपए की कीमत तेजी से गिरती है, तो आरबीआई को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। अन्यथा रुपए की कीमत को बाजार के रूख पर छोड़ देना ही ठीक होगा।
‘‘इकॉनामिक टाइम्स’’ में स्वामीनाथन अंकलेश्वर अय्यर के लेख पर आधारित