महामारी के रूप मे फैलता क्षयरोग
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- विश्व में क्षयरोग के चार मरीजों में से एक भारतीय है। महामारी विशेषज्ञो का मानना है कि क्षयरोग के कीटाणु भारतीय जन स्वास्थ्य तंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
आज यह समस्या पहले से कहीं अधिक कठिन दिखाई दे रही है। फर्क यह है कि आज हम इसकी दुश्वारता को जानते हैं। - देश में क्षयरोग के मरीजों की संख्या अनुमानतः 22लाख है।वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होगी, क्योंकि निजी अस्पतालों से क्षयरोग के मरीजों का सही विवरण नहीं मिल पाता है।सरकारी जितने ही मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करवाते हैं। इसलिए यदि इनकी वास्तविक संख्या चालीस लाख के आसपास मानें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
- भारत की निजी स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत सी अनियमितताएं हैं। क्षयरोग के संबंध मे भी यही देखने में आता है। ये अस्पताल मरीजों को बीमारी की स्पष्ट जानकारी नहीं देते। अस्पताल से उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता।
- इन अस्पतालों में मरीजों को लक्षणों के आधार पर लम्बे समय तक ब्राडस्पैक्ट्रम एंटीबायोटिक्स दी जाती रहती हैं। इससे मरीजों में इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 64 हजार ऐसे मरीज हैं, जो क्षयरोग की दवाओं के प्रतिरोधी हो चुके हैं।
- निजी अस्पतालों के मरीज थोड़ा सा आराम मिलने पर उपचार छोड़ देते हैं। वे छः से लेकर नौ माह तक का उपचार पूरा नहीं करते। बीच में उपचार छोड़ देने से कीटाणुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
- सन् 2012 में राष्ट्रीय क्षयरोग नियंत्रण के संशोधित कार्यक्रम के जरिये अब निजी अस्पतालों को क्षयरोग के मरीजों की जानकारी देने को बाध्य किया गया है। अभी भी सरकारी एवम् निजी क्षेत्र में क्षयरोग पर नियंत्रण की बहुत आवश्यकता है।
‘‘इंडियन एक्सप्रेस’’ के संपादकीय पर आधारित
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