दूरसंचार क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता

Afeias
04 Oct 2016
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telecommunications1Date: 04-10-16

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भारत को दूरसंचार के क्षेत्र में अभी बहत कुछ करना बाकी है। दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है। और इससे कदम मिलाकर चलने के लिए भारतीय तकनीकों में शोध, अनुसंधान एवं विकास की नीतियों का अभाव है।

  • दूसरी ओर यदि चीन को देखें, तो चीनी कंपनी हूआवे (Huawei) ने गीगाबिट मोबाईल नेटवर्क पर काम करना शुरू कर दिया है। यह एक ऐसा नेटवर्क है, जो प्रति सेकंड दस लाख से अधिक बिट्स की दर पर डाटा उपलब्ध कराएगा। इसे डॉयचे (Deutsche) टेलीकॉम के लिए बनाया जा रहा है। हूआवे कंपनी इंग्लैण्ड में वोडाफोन के लिए भी नई तकनीक विकसित करने में लगी है। हूआवे ने इस उपलब्धि के लिए विभिन्न बैंकों के स्पैक्ट्रम की उन्नत किस्मों का प्रयोग किया है। अब जब दुनिया पाँच साल बाद 5जी तकनीक पर पहुँचेगी, हूआवे ने अभी ही 5जी का लक्ष्य हासिल कर लिया है।
  • हूआवे की प्रति सेकंड लाखों से अधिक बिट्स की दर के आगे भारत अपनी 4जी में इसके मात्र 1/10वें हिस्से की डाटा की दर देकर ही ताली बजा रहा है। वैसे दूरसंचार सेवाएं उपलब्ध कराने वाली कंपनी की तुलना दूरसंचार उपकरण निर्माता से नहीं की जानी चाहिए। परंतु रोना इस बात का है कि भारत में दूरसंचार उपकरण के निर्माण में अनुसंधान एवं विकास पर आधारित एक ही कंपनी काम कर रही है। स्थिति खराब इसलिए भी है क्योंकि भारतीय दूरसंचार ऑपरेटर इन निर्माता कंपनियों को कस्टम करने या अनुकूलन की छूट नहीं देते। ऐसे में इनका विकास मुश्किल हो जाता है।
  • भारतीय दूरसंचार जगत में क्रांति लाने वाले सैम पित्रोदा के नेतृत्व में काम कर रही सरकारी संस्था सी.डॉट ने घरेलू तकनीकों के विकास के लिए पहल की थी। परंतु विदेशी सहयोग थोपे जाने पर यह विफल हो गया।
  • भारत की किसी प्रयोगशाला या विश्वविद्यालय के पास ऐसा कोई दूसरसंचार किट नहीं है, जो साइबर सुरक्षा कर सके, उपकरण विकसित करना तो दूर की बात है।
  • हम विश्व को सबसे बड़ी संख्या में इंजीनियर दे रहे हैं। वहीं चीन में हूआवे 1,50,000 लोगों को अपने यहाँ काम पर लगा रखा है, जिसमें से आधे अनुसंधान एवं विकास में लगे हुए हैं। भारत को अपनी डिजीटल अर्थव्यवस्था को विश्वस्तरीय बनाने तथा अपने इंजीनियरों की प्रतिभा का देश में ही उपयोग करने के लिए ऐसी औद्योगिक नीति की आवश्यकता है, जो शोध एवं विकास के साथ-साथ जोखिम उठाने में विश्वास रखती हो

इकानॉमिक टाइम्सके संपादकीय पर आधारित