दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय का प्रभाव
Date: 24-08-16
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- 4 अगस्त 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रजातंत्र के इतिहास में एक अजूबा निर्णय दिया है। इस निर्णय में दिल्ली के संघ शासित क्षेत्र में उपराज्यपाल को प्रशासन का प्रमुख माना गया है।
- उच्च न्यायालय के इस निर्णय से अंग्रेजों के जमाने जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। अब दिल्ली की जनता और उसके प्रतिनिधि शायद दिल्ली विधानसभा के लिए होने वालें चुनावों के औचित्य पर सवाल उठाने लगें। अगर दिल्ली शासन की कमान केंद्र द्वारा नियुक्त ऐसे उपराज्यपाल को संभालनी है, जो जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है, तो फिर मतदान का क्या लाभ?
- न्यायालय ने पहले भी कई प्रकरण में ऐसे निर्णय दिए हैं, जो संविधान की आत्मा से अलग हटकर लगते हैं। हाँलाकि अरुणाचल प्रदेश के बारे में दिए अपने निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि मंत्रियों या प्रतिनिधियों के उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर संविधान टिका हुआ है, परंतु दिल्ली सरकार के संबंध में दिए न्यायालय के निर्णय ने उसकी अपनी ही बात को पलट दिया है।
- सवाल उठता है कि क्या अनुच्छेद 239 ए ए में संविधान की नींव समझे जाने वाले सरकार के मंत्रिमंडलीय स्वरूप को ही अपवाद की श्रेणी में रख दिया जाए?
- उच्च न्यायालय का निर्णय संविधान के सिद्धांतों के विरूद्ध है। यह निर्णय कुछ-कुछ वायसराय शासन की झलक देता है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में आशीष खेतान के लेख पर आधारित।
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