कोविड क्षतिपूर्ति राजकोषीय संघवाद का मुद्दा न बने

Afeias
04 Oct 2021
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Date:04-10-21

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कोरोना महामारी से हम धीरे-धीरे उबर रहे हैं। इसके साथ ही एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि इस भयंकर विपदा से प्रभावित लोगों को किस सीमा तक क्षतिपूर्ति दी जाए, और केंद्र सरकार दे या राज्य सरकार दे ?

  • क्या कहता है आपदा प्रबंधन अधिनियम ?

प्रश्न उठ रहा है कि 2005 के अधिनियम के भाग 12 में शामिल अनुग्रह राशि कोविड से होने वाली मृत्यु के लिए प्रासंगिक है या नहीं ?

अधिनियम के तहत किसी भी ‘अधिसूचित आपदा’ के लिए राहत के न्यूनतम मानकों में ‘जान गंवाने पर अनुग्रह सहायता’ (धारा 12 (iii)) दी जानी चाहिए। यह अलग बात है कि अधिनियम में सहायता की सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

  • केंद्र सरकार का मत

उच्च्तम न्यायालय के निर्णय के बाद केंद्र सरकार ने प्रत्येक मृतक व्यक्ति के लिए 50,000 रु. की कोविड अनुग्रह राशि की घोषणा की है। केंद्र सरकार ने इसका उत्तरदायित्व राज्य सरकारों के आपदा राहत कोष पर डाल दिया है। यह विवादास्पद एवं विचारणीय है, क्योंकि –

– वित्त आयोग की सिफारिश से राज्य आपदा राहत कोष के लिए फंड का योगदान, केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही करते हैं। कोविड की दूसरी लहर के दौरान राज्यों की मदद के लिए केंद्र ने अपने हिस्से की पहली किश्त को समय से पहले ही जारी करके राज्यों को दे दिया है।

– दूसरी ओर, अपने स्तर पर भी राज्य पहले ही कोविड पीड़ितों के लिए 10 लाख से लेकर 1 लाख रु. तक के मुआवजे की घोषणा कर चुके हैं। हांलाकि इसका भुगतान उन्होंने मुख्यमंत्री राहत कोष के माध्यम से किया है, फिर भी उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर ही बनी हुई है।

– भले ही केंद्र सरकार कोविड संबंधी मामलों पर बहुत सक्रिय रही है, भले ही उसने वैक्सीन पर 35,000 करोड़ रु. खर्च किए हैं, फिर भी उसके पास अनुमानित राजस्व से ज्यादा आने वाला है। अंतः वह इस क्षतिपूर्ति का जिम्मा दो तरह से ले सकती है। या तो वह आपदा राहत कोष में अपना हिस्सा बढ़ा दे, या भारत की संचित निधि के माध्यम से सीधे भुगतान कर दे।

केंद्र सरकार को इस पर जल्द ही कोई प्रभावी निर्णय लेना चाहिए। अन्यथा केंद्र-राज्य गतिरोध की फिर से संभावना बढ़ जाएगी।

हालांकि एक स्थायी दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है। इसके लिए राज्यों व केंद्र को 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर गंभीरता से तुरंत गौर करना चाहिए। वित्त आयोग ने आपदा लागत की भरपाई के लिए बीमा मार्ग सुझाया है, जिसके अंतर्गत सरकारें, आपदा से संबंधित भुगतान के लिए बीमा करवाती हैं। इसके बाद यह मुद्दा बीमा मामला का बन जाता है, और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच राजकोषीय संघवाद का संघर्ष टल सकता है।

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि संभावित लाभार्थियों के लिए, केंद्र और राज्य सरकारों को पारस्परिक रूप से संतोषजनक समाधान पर जल्द-से-जल्द पहुँचना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित एन आर भानमूर्ति के लेख पर आधारित। 24 सितंबर, 2021