COP26 से जुड़ी कुछ उपलब्धियां
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कई सवालों के बीच, कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज-26 या सीओपी-26 शिखर सम्मेलन की एक सार्थक उपलब्धि यह है कि 105 देशों ने 2030 तक अपने मीथेन उत्सर्जन को 2020 के स्तर से 30% तक कम करने का संकल्प लिया है। हमारे लिए केवल कार्बन डाइ ऑक्साइड या CO2 जैसी ग्रीनहाउस गैस ही चिंता का विषय नहीं हैं, अपितु CH4 या मीथेन गैस भी ग्लोबल वार्मिंग के एक चौथाई हिस्से के लिए जिम्मेदार है।
महत्वपूर्ण यह है कि अमेरिकी सरकार ने भी मीथेन को कम करने में अपना हाथ बढ़ाया है। इसमें कुछ तेल और गैस उत्पादकों का भी समर्थन प्राप्त है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए मीथेन उत्सर्जन में कटौती का तकनीकी समाधान आसानी से उपलब्ध है।
इससे भी बेहतर विकल्प संयुक्त राष्ट्र का नवीनतम आकलन हो सकता है। ऐसा अनुमान है कि औद्योगिक मांस उत्पादन प्रणाली के द्वारा विश्व स्तर पर 32% मानवजनित मीथेन पशुधन क्षेत्र से आता है। अतः मांस के उत्पादन के तरीके में बदलाव को जलवायु समाधान का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
भारत ने अभी तक सहमति क्यों नहीं दी –
भारत की अर्थव्यवस्था में पशुधन और धान की खेती (8% मीथेन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार) का बहुत महत्व है। समझने की आवश्यकता यह है कि भारत अपने विशाल पशुधन और धान की अर्थव्यवस्था को उन्नत कर सकता है। इतने ही मीथेन उत्सर्जन से धान की अधिक मात्रा प्राप्त करने के साथ-साथ गाय और भेड़ों में मीथोजेनिक गतिविधियों को करने के लिए अनेक प्रयोग किए गए हैं। इनके परिणाम अच्छे रहे हैं। उदाहरण के लिए, आसीएआर ने एक फीड सप्लीमेट विकसित किया है, जो उनके मीथेन उत्सर्जन में 17.20% की कटौती करता है।
दूसरे, हमें ‘ग्रीन मीट’ या ‘कृत्रिम मांस’ के भविष्य में सक्रिय भागीदारी पर विचार करना चाहिए। इसके लिए प्रौद्योगिकी पहले से ही उपलब्ध है। भारत में स्टार्ट-अप संस्कृति विकसित है। इस माध्यम से हम जीतने की क्षमता रखते हैं। अतः हमें निश्चित रूप से पहल करनी चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 9 नवम्बर, 2021