
छूट की त्रुटि
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राज्य सरकार ने इसे विवेकाधिकार का मामला बना दिया। जबकि सरकार के पास इस विवेक को दूसरे तरीके से लागू करने के लिए पर्याप्त आधार थे।
- उच्चतम न्यायालय का ही लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत संघ का मामला है, जिसमें न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि राज्य को निर्धारित करना चाहिए कि “क्या अपराध व्यक्तिगत स्तर का है, जिसमें समाज को प्रभावित नहीं किया।” इसके बाद छूट का निर्णय लिया जाना चाहिए।
- जून में, केंद्रीय गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में छूट पर स्पष्ट रूप से कहा गया था कि आजीवन दोषियों और बलात्कारियों को विशेष छूट नहीं दी जानी चाहिए।
ये दोनों ही आधार ऐसे थे, जिनके अनुसार गुजरात सरकार दोषियों को जेल में रख सकती थी। अतः गुजरात सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा का सवाल उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्य को विवेकाधिकार देने से जटिल है। देश को इस प्रकार के मामलों में निष्पक्ष समीक्षा के प्रति अग्रसर होना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 अगस्त, 2022