चेन्नई जैसी आपदा के लिए जिम्मेदार कौन ?
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जल्द ही भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तैयारी में है। लेकिन क्या उसके नगरों का बुनियादी ढांचा इसके अनुकूल है? हाल ही में चेन्नई में आया मिंचैंग चक्रवात हमें यह विचार करने को मजबूर करता है कि दिल्ली, अहमदावाद, मुंबई और बेंगलुरू जैसे महानगरों को भी अगर हमने आपदा से सुरक्षा के लिए तैयार नहीं किया है, तो द्वितीयक और तृतीयक दर्जे के नगरों का क्या हाल हो सकता है। इसके लिए दोषी किसे कहा जा सकता है –
- चेन्नई में हर वर्ष अक्टूबर-दिसंबर के बीच वार्षिक वर्षा में से 60% वर्षा होती है। कागज पर, चेन्नई का हाइड्रोलॉजिकत लेआउट ठीक दिखायी देता है। लेकिन यह पुराने समय का बना हुआ है। हाल के कुछ वर्षों में होने वाली अतिवर्षा के अनुसार इसे सुधारा नहीं गया है।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद् की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि देश के अन्य बड़े नगरों की तुलना में चेन्नई में बाढ़ और चक्रवात का खतरा अधिक है।
- शहरी अराजकता योजनाओं को कमजोर करती है। अन्य भारतीय शहरों की तरह चेन्नई का जीवन भी उसके अधिकारियों की मिली भगत से तैयार की गई योजना के अनुसार चलता है। 2015 की बाढ़ के बाद आई सीएजी की रिपोर्ट में राज्य की सरकारी संस्थानों के काम में अनेक खामियां बताई गई थीं, जो आज भी जस की तस हैं।
- जल निकायों पर लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है।
- वेटलैण्डस का क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। मुंबई में तो सरकार ने ही मिठी नदी के क्षेत्र में आईटी उद्योग को जगह दे दी है।
इस वर्ष चेन्नई की बाढ़ से गंभीर आर्थिक नुकसान हुआ है। यह नुकसान केवल इसलिए हुआ है, क्योंकि बुनियादी ढांचे और आवासों के निर्माण की अनुमति देते समय पर्यावरणीय जोखिमों का आकलन करने में ईमानदारी नहीं बरती जा रही है। इसे सुधारा जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ एवं ‘द हिंदू’ में प्रकाशित लेख पर आधारित। 6 दिसंबर, 2023