कार्बन उत्सर्जन पर वैश्विक परिदृश्य

Afeias
05 Apr 2025
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यदि हम जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की बात करें, तो बहुत निराशा दिख रही है। इस चिंता के 4 प्रमुख कारण हैं –

हाल ही में फॉरेन अफेयर्स पत्रिका में लिखते हुए येरगन/आर्जाग /आर्या ने दलील दी कि ऊर्जा का बदलाव सही ढंग से नहीं हो रहा है। ऊर्जा में हाइड्रोकार्बन की हिस्सेदारी जो 1990 में 85% थी, आज भी 80% है।

  • दुनिया में आजकल चल रहे लोकलुभावनवाद और जलवायु परिवर्तन के बीच अजीब रिश्ता है। सोशल मीडिया से इसके बारे में भ्रम बढ़ा है। लोग छद्म विज्ञान के बहकावे में आ जाते हैं। ट्रंप भी कार्बन कम करने के विरोधी राष्ट्र रूस व सऊदी अरब के साथ खड़े दिखाई देते रहे हैं।
  • कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण के लिए पूरे विश्व को एक साथ आने की जरूरत है। पर कुछ राष्ट्र के नेता; जैसे – चिगफिंग, पुतिन, ट्रंप अपने लाभ के लिए मनमानी कर रहे हैं और दुनिया को युद्ध जैसे दूसरे विषयों में उलझा रहे हैं।
  • वैज्ञानिकों ने कहा था कि वैश्विक तापमान औद्योगीकरण के दौर से 1.5॰C से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए। पर अब इसके 2॰C के ऊपर निकल जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

हमारी योजनाओं का, चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर हो, कंपनी के स्तर पर हो या सरकारी संगठन के स्तर पर, इनका दूरगामी प्रभाव होगा। इसीलिए हमें तटवर्ती इलाकों के रियल स्टेट की कीमतों में बहुत सतर्कता रखनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन की मुश्किलों के बावजूद हमारा भविष्य इन 4 कारणों से बेहतर हो सकता है –

  • अतीत में जलवायु परिवर्तन को समझाने के लिए हमें तर्क देना पड़ता था। लेकिन आज सब सामने है। भारत में कृषि और मवेशियों को गर्म रातों से नुकसान हो रहा है। इसलिए सोशल मीडिया के जरिए थोपा गया लोकलुभावनवाद और छदम प्रचार को लोग समझ रहे हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और भंडारण की कीमतें क्षमता बढ़ने के साथ-साथ घटती जाएंगी। इससे अतीत में भले ही धीमा लाभ हुआ है, पर भविष्य की संभावनाएँ प्रबल हैं। भारत में तेज धूप होती है। इसीलिए नवीकरणीय ऊर्जा में ही हमारा हित है।
  • अमेरिकी दक्षिणपंथ का चरमवाद उन लोगों को लोकतंत्र और जननीतियों का महत्व समझा देगा, जो सोशल मीडिया के जरिए अभी तक अतिवाद को बढ़ावा दे रहे थे।
  • कार्बन उत्सर्जन को कम करना है या नहीं, यह देशों के हिसाब से बदल सकता है; जैसे श्रीलंका का वैश्विक उत्सर्जन में योगदान बहुत कम है। इसलिए वह उत्सर्जन कर सकता है। लेकिन भारत वैश्विक उत्सर्जन में 10% का योगदान करता है। इसीलिए हमारी नीति में उत्सर्जन कम करना ही होना चाहिए। बढ़ती गर्मी भारत की आबादी को बहुत नुकसान पहुँचाती है।
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