कार्बन-कर जैसी जलवायु कार्ययोजना की जरूरत
Date:16-03-21 To Download Click Here.
पूरे विश्व पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तेजी से दिखाई दे रहा है। आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्र का सूखा और टैक्सस में जमाने वाली सर्दी का पड़ना आदि जलवायु परिवर्तन के ही संकेत हैं। यह सब देखते हुए पर्यावरणविदों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, और उसी के अनुसार ग्लोबल एक्शन प्लान तैयार करना चाहिए।
इसी दिशा में दुनिया भर के अर्थशास्त्री कार्बन उत्सर्जन पर कर लगाने को लेकर आम सहमति रखते हैं। वैश्विक तौर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इस हेतु सभी देशों को बराबरी का प्रोत्साहन मिले। भारत जैसे कम उत्सर्जन वाले देश, भविष्य में कोयला उद्योग पर लगाम कसें, तो वहीं यूरोप अपने कुछ प्लांट को बंद करे।
सबसे अच्छा तो यह होगा कि ग्लोबल कार्बन रिडक्शन इंसेंटिव ( जी सी आर आई ) के नाम पर प्रति टन कार्बन उत्सर्जन पर टैक्स लगाया जाए। प्रत्येक देश, जो प्रति व्यक्ति वैश्विक औसत ( 5 टन ) से अधिक का उत्सर्जन करता है, वह ग्लोबल इंसेंटिव फंड में कर जमा कराए। इस वार्षिक भुगतान की गणना उनकी आबादी और जी सी आर आई द्वारा प्रति व्यक्ति अतिरिक्त उत्सर्जन को गुणा करके की जाएगी। इस प्रक्रिया में भारत जैसे वैश्विक प्रति व्यक्ति औसत से नीचे के देशों को एक सराहनीय भुगतान प्राप्त होगा।
हर देश को प्रति टन 10 डॉलर का नुकसान होता है, जिसके द्वारा वे प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में वृद्धि करते हैं। चाहे वे आज उच्च, निम्न या औसत स्तर पर हों, इसलिए भारत के पास अमेरिका के समान उत्सर्जन के लिए समान प्रोत्साहन है।
- यह समाधान इक्विटी समस्या को भी संबोधित करता है। सबसे कम उत्सर्जन करने वाले लेकिन जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक पीड़ित गरीब देशों को भुगतान किया जाएगा। इससे 2009 में धनी देशों द्वारा जलवायु समायोजन के वादे की रकम गरीब देशों को मिल पाएगी।
- जी सी आर आई तर्कसंगत तरीके से भुगतान की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करेगा।
इससे विकासशील देश, उत्सर्जन को नियंत्रण में रखेंगे और अपना निवेश नवीनीकृत ऊर्जा में करेंगे। गरीब देशों का भी कल्याण हो सकेगा।
जी सी आर आई में कुछ सुधार की जरूरत –
- सुनिश्चित करना होगा कि आयातित वस्तुओं में निहित उत्सर्जन के कुछ भाग को आयातक देश के उत्सर्जन में मिलाया जाए और निर्यातक देश के मिलान से घटाया जाए।
- यह प्रस्ताव, वातावरण में घुल चुकी कार्बन की पिछली जिम्मेदारी की अनदेखी करता है। इस दायित्व से निपटना विवादास्पद होगा।
किसी भी रूप में जलवायु परिवर्तन की तत्काल चुनौती को दूर करने के प्रयासों को बाधित नहीं करना चाहिए। यह प्रस्ताव, मैड्रिड के सीओपी 25 की असफलता के बाद एक नया, तार्किक और न्यायसंगत दृष्टिकोण प्रदान करता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रघुराम राजन के लेख पर आधरित। 23 फरवरी, 2021