बुनियादी ढांचा और गतिशक्ति

Afeias
09 Nov 2021
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Date:09-11-21

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किसी भी देश के लिए बुनियादी ढांचा ऐसा आधार रहा है, जिस पर देशों की तस्वीर बदल गई है। अमेरिका की महामंदी के बाद रूजवेल्ट की ‘न्यू डील’ और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान की ‘मार्शल’ योजना ने दोनों को ऊपर उठा दिया था। इसी प्रकार के आर्थिक रूपातंरण के लिए भारत को अपने निर्यात क्षेत्र को महत्वपूर्ण बनाना होगा। इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा ही बाधा रहा है।

बुनियादी ढांचा क्यों मायने रखता है?

बुनियादी ढांचे के खर्च के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर गुणक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। परियोजना के शुरू होते ही न केवल श्रम और निर्माण सामग्री की मांग बढ़ती है, बल्कि दूसरे क्रम के प्रभावों के माध्यम से बेहतर कनेक्टिविटी के कारण माल और लोगों की आवाजाही सहज हो जाती है। इससे रसद की लागत कम हो जाती है।

भारतीय रिजर्व बैंक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्ल्कि फाइनेंस एंड पॉलिसी के अध्ययनों ने गुणक के 2.5-3.5 गुना होने का अनुमान लगाया है। इसका अर्थ है कि सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे के निर्माण में खर्च किए गए प्रत्येक रुपए के लिए 2.50-3.50 रुपए का सकल घरेलू उत्पाद का लाभ अर्जित होता है। इसके अलावा, आर्थिक संकुचन (इकॉनॉमिक कांट्रैक्शन) के समय में यह गुणक अपेक्षाकृत अधिक होता है।

किसी देश की बुनियादी ढांचा परियोजना अगर समन्वित दृष्टिकोण के साथ बनाई जाए, तो वह कुशलतापूर्वक कई शहरी एवं औद्योगिक केंद्रों के विकास को सक्षम कर सकती है। इस श्रृंखला में शहरी केंद्र, संतुलित क्षेत्रीय विकास का मार्ग बनते हैं। इस प्रकार पूरे देश में औद्योगिक समूह विकसित हो सकते हैं।

भारत की स्थिति क्या है?

  • भारत में मल्टी मॉडल परिवहन तंत्र अभी दूर है। यहाँ सड़कें ही यातायात के 64% हिस्से पर हावी हैं। अतः डीजल के दाम बढ़ते ही बाकी सामानों के दाम बढ़ जाते हैं।
  • हमें रेलवे के विस्तार की आवश्यकता है।
  • अनेक इकॉनॉमिक जोन, इंडस्ट्रियल पार्क, लॉजिस्टिक हब आदि की योजना बनाते हुए मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी पर ध्यान नहीं दिया गया है।
  • निर्णय में बिखराव के चलते भी औद्योगिक नेटवर्क असंबद्ध रहा है।
  • विनिर्माण में पैमाने की कमी और एक अप्रभावी लॉजिस्टिक्स नेटवर्क ने भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमजोर कर दिया है।

‘गतिशक्ति’ मास्टर प्लान-

  • इस योजना में सभी मौजूदा और प्रस्वावित आर्थिक क्षेत्रों को एक ही प्लेटफॉर्म पर मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ मैप किया गया है।
  • विभिन्न मंत्रालयों की अलग-अलग परियोजनाओं की भविष्य में जांच की जाएगी और समग्र योजना के मापदंडों के भीतर ही उन्हें स्वीकृत किया जाएगा, जिससे प्रयासों का समन्वय होगा।
  • इस योजना में डिजीटाइजेशन के माध्यम से समयबद्ध क्लीयरेन्स, प्रमुख विवादों या समस्याओं को चिन्हित करना एवं योजना की मानिटरिंग की जा सकेगी।
  • लॉजिस्टिक नेटवर्क और विनिर्माण में पैमाने की अर्थव्यवस्था तक पहुंच के लिए औद्योगिक एवं लॉजिस्टिक पार्कों का आकार बढ़ाया जाएगा। ताकि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उतर सकें।
  • नेशनल इंडस्ट्रियल कॉरीडोर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, राज्य सरकारों के साथ निकट समन्वय में काम करेगा।
  • सभी योजनाओं में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन रणनीतियां शामिल होगी। जैसे कि भारतीय रेलवे ने 2030 तक शून्य-कार्बन उत्सर्जक बनने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है।
  • आर्थिक सुधारों के साथ कारोबारी माहौल में निरंतर सुगमता से औपचारिकता और उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा।
  • बैंक बैलेंसशीट के स्पष्ट होने से क्रेडिट की उपलब्धता बढ़ेगी।
  • बड़े भू-भाग मिलने से विनिर्माण के बड़े पैमाने को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश, एक निर्बाध मल्टीमॉडल इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क बनाकर लॉजिस्टिक की लागत को कम करेगा।

योजना के क्रियान्वयन के लिए विभिन्न सरकारी स्तरों और विभागों के बीच तालमेल की आवश्यकता होगी। यह कार्य आसान नहीं है। परंतु उम्मीद की जा सकती है कि गतिशक्ति मास्टर प्लान के द्वारा अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ाया जा सकेगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 13 अक्टूबर, 2021

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