बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के लिए व्यवस्था की घोर कमी
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भारत में बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2022 और 2050 के बीच 80 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की जनसंख्या लगभग 279% की दर से बढ़ेगी। इनकी देखभाल के लिए सरकार और समाज के पास क्या व्यवस्था है?
कुछ बिंदु –
- यूएनएफपीए के अध्ययन के अनुसार, 2050 से पहले ही बुजुर्गों की एक बड़ी संख्या अल्जाइमर, पार्किंसंस आदि से पीड़ित हो सकती है।
- लगभग एक चैथाई बुजुर्ग आबादी यानी 23% दो या उससे ज्यादा पुरानी बीमारियों से पीड़ित है।
- मधुमेह से पीड़ित बहुत से लोग हैं, जिन्हें इसका पता ही नहीं है।
- गत वर्ष नीति आयोग के एक शोधपत्र में बताया गया था कि 78%, बुजुर्ग बिना पेंशन के रहते हैं।
- तीन में से एक बुजुर्ग अवसाद से पीड़ित हैं, और 32% लोगों में जीवन से संतुष्टि का भाव कम था।
- लगभग 19% बुजुर्गों की कोई आमदनी नहीं है।
समस्याएं क्या है –
- कागजों पर बुजुर्गों के लिए कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है। अकेले मंत्रालयों में लगभग 30 केंद्रीय योजनाएं हैं। इनकी कार्यान्वयन की स्थिति बहुत खराब है।
- योजनाओं के प्रति बुजुर्गों में जागरुकता की कमी है।
- प्रशिक्षित सहायक कर्मचारियों की बहुत कमी है। इस कार्य के लिए कानूनी और व्यावसायिक नियम नदारद हैं।
- बुजुर्गों की देखभाल का खर्च बहुत ज्यादा है।
- उम्र बढ़ने के साथ वृद्धावस्था संबंधी मानसिक विकारों का जोखिम तेजी से बढ़ता है। इस हेतु प्रशिक्षित कर्मियों की मांग आपूर्ति से कहीं बहुत ज्यादा है। यह एक भयावह वास्तविकता है। इस पर जल्द ही ध्यान देने की जरूरत है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 अक्टूबर, 2025