ब्रिक्स के विस्तार के निहितार्थ
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वैश्विक बहुध्रुवीय व्यवस्था को प्रतिबिंबित करने के लिए ब्रिक्स समूह का विस्तार किया गया है। पाँच सदस्य देशों के इस समूह में छः नए देश जुड़ चुके हैं। अन्य 40 देश भी इससे जुड़ना चाहते हैं। 22 देशों ने इसकी सदस्यता के लिए औपचारिक आवेदन कर दिया है। कुछ तथ्य –
- 2009 से होने वाली ब्रिक्स की बैठक ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनबीडी) की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य विकास-सहायता और आकस्मिक रिजर्व से देशों को सहायता पहुँचाना है। यह बैंक 3.3 अरब डॉलर मूल्य की 96 परियोजनाओं को निधि दे रहा है।
- ब्रिक्स सदस्य पश्चिम प्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रति अपने असंतोष को लेकर एकजुट रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उभरी विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी पश्चिमी प्रभुत्व वाली संस्थाओं के स्थान पर ऐसे संस्थानों का निर्माण किए जाने का उद्देश्य है, जो व्यापक सुधारों के लिए मजबूती से आंदोलन कर सके। उभरती अर्थव्यवस्थाओं की उपस्थिति और हितों को समायोजित कर सके।
- ब्रिक्स के हालिया विस्तार ने इसे ऐसा आकार दे दिया है, जो वैश्विक धारणाओं और हितों के अनुरूप है। उम्मीद है कि यह सभी सदस्य देशों को सामूहिक रूप से आर्थिक आधार प्रदान कर सकेगा।
- ब्रिक्स के विस्तार के साथ ही विश्व की जनसंख्या का 46% ब्रिक्स के पास हो गया है। वैश्विक जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 31.5% से बढ़कर 37% (पीपीपी के संदर्भ में) हो गई है। यह जी-7 की जीडीपी (30.7%) से ज्यादा है।
- ब्रिक्स के पांच प्रमुख सदस्यों का वैश्विक निर्यात में 23% और आयात में 19% हिस्सा है। नए सदस्यों के साथ यह 3.7% और 3% बढ़ जाएगा।
- प्रमुख प्रभाव ऊर्जा क्षेत्र पर होगा। 2022 में विश्व स्तर पर प्रतिदिन के 9 करोड़ बैरल तेल उत्पादन में ब्रिक्स के पांच देशों की 20% वैश्विक भागीदारी थी। यह बढ़कर 42% हो जाएगी।
- समूह के विस्तार से भू-रणनीतिक मूल्य में वृद्धि होगी। एशिया तो पहले ही काफी कुछ ब्रिक्स सदस्यों के साथ जुड़ा हुआ है। सऊदी के तेल उत्पादन का 35% भारत और चीन को जाता है। रूस भी तेल का बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। अब ब्राजील को एक बाजार के रूप में देखा जा रहा है। अर्जेंटीना लेटिन अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
इस प्रकार नए ब्रिक्स सदस्य, क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों के संदर्भ में समूह के साझा विचारों में फिट बैठते हैं। अतः इसके विस्तार को ‘आधुनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़’ की तरह स्वीकार किया जाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित तलमीज़ अहमद के लेख पर आधारित। 6 सितंबर, 2023
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