ब्रिक्स सम्मेलन

Afeias
27 Aug 2018
A+ A-

Date:27-08-18

To Download Click Here.

हाल ही में ब्रिक्स यानि ब्राजील, रशिया, इंडिया, चाइना और साउथ अफ्रीका देशों का सम्मेलन जोहान्सबर्ग में सम्पन्न हुआ है। इस सम्मलेन के परिणामस्वरूप इन देशों ने एक लंबा-चैड़ा घोषणापत्र जारी किया है।

अपने गठन के पहले दशक में ही ब्रिक्स ने विश्व पर अपना काफी प्रभाव जमा लिया है। इस सम्मेलन के लंबे घोषणापत्र का होना इस बात की ओर इंगित करता है कि इन देशों के बीच आपस में सहयोग और संगठन की भावना बल पकड़ती जा रही है।

सम्मेलन की मुख्य बातें :

  • सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा विश्व-व्यापार को लेकर उठाए जा रहे कदमों पर चर्चा की गई। सदस्यों का मत था कि वर्तमान में चल रहे व्यापार-युद्ध की जगह, विश्व व्यापार संगठन के नियमों पर आधारित, मुक्त और बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था ही चलाई जानी चाहिए।
  • सम्मेलन के देशों ने आने वाली चतुर्थ औद्योगिक क्रांति के लिए तैयारी पर भी चर्चा की। इससे संबंधित रोजगार, शिक्षा और कौशल विकास को मुद्दा बनाया गया। ब्रिक्स पार्टनरशिप ऑन न्यू इंडस्ट्रीयल रिवोल्यूशन नामक एक समझौता भी किया गया। यह तभी सार्थक होगा, जब ये देश विकसित होती तकनीक में निजी क्षेत्र और युवा नवोन्मेषकों को भागीदार बनायें।
  • ब्रिक्स व्यापार परिषद् पहले ही निर्माण, ऊर्जा, वित्तीय सेवाओं और क्षेत्रीय विमानन के क्षेत्र में व्यापार को बढ़ाने और आर्थिक सहयोग की दिशा में काम कर रहा है। इसकी मजबूती को बनाए रखने की दिशा में सहमति दिखाई गई।
  • सदस्यों ने विकास को ‘जन-आधारित’ रखने पर एक बार फिर से अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। फिल्म, खेल, शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के जरिए देशों में आपसी तालमेल बढ़ाने पर भी जोर दिया गया।
  • गत वर्ष के सम्मेलन में चीन ने ‘ब्रिक्स प्लस’ का विचार प्रस्तुत करते हुए कुछ अन्य देशों को भी इसमें शामिल करने की वकालत की थी। दक्षिण अफ्रीका ने इस पथ का अनुकरण करते हुए पाँच अन्य देशों को आमंत्रित किया था। इसका सबसे बड़ा लाभ यह रहा कि इन देशों के नेताओं के बीच आपसी विचार-विमर्श हो सका।

भारत और चीन के नेताओं के बीच भी परस्पर बातचीत हो सकी। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच पिछले चार महीनों में होने वाली यह तीसरी मुलाकात थी।

विश्व की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या और 22 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद का प्रतिनिधित्व करने वाले ब्रिक्स देशों के दसवें सम्मेलन पर पूरे विश्व की नजरें टिकी हुई थीं। लेकिन कई मोर्चों पर यह विफल भी रहा।

  • वैश्विक वित्त का प्रशासन, संयुक्त राष्ट्र का लोकतंत्रीकरण तथा सुरक्षा-परिषद् का विस्तार आदि मूलभूत मामलों पर कोई काम नहीं हो सका। इसका मुख्य कारण चीन का प्रभुत्व और रशिया से उसकी बढ़ती निकटता रही। ये दोनों ही देश भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील को सुरक्षा परिषद् की सदस्यता देने के विरोधी हैं।
  • जहाँ तक भारत की भूमिका का सवाल है, वह उल्लेखनीय रही। दक्षिण अफ्रीका के एक प्रवक्ता ने तो अमेरिका, चीन और रशिया के बीच चलती उठा-पटक में भारत की नाजुक भू-राजनीतिक स्थिति की चर्चा भी की। सम्मेलन के घोषणा-पत्र में विश्वव्यापी आतंकवाद की समस्या पर चार अनुच्छेदों का लिखा जाना; भारत के लिए एक उपलब्धि रही।

सोचने की बात यह है कि क्या ब्रिक्स में किए गए प्रयासों का कुछ भी सकारात्मक प्रभाव विकसित देशों के समूह जी-7 पर पड़ेगा?

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित राजीव भाटिया के लेख पर आधारित। 31 जुलाई, 2018

Subscribe Our Newsletter