बिम्सटेक को मजबूत करने की जरूरत

Afeias
04 May 2021
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Date:04-05-21

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हाल ही में ‘द बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टैक्नीकल एण्ड इकॉनामिक कार्पोंरेशन’, जिसे हम सामान्यत ‘बिक्सटेक’ के नाम से जानते हैं, के विदेश मंत्रियों की ई-बैठक हुई थी।

ज्ञातव्य हो कि इस संगठन की नींव भारत, थाइलैण्ड, बांग्लादेश और श्रीलंका के आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से 1997 में रखी गई थी, जिसमें बाद में म्यांमार, नेपाल और भूटान को शामिल किया गया। अपने प्रारंभिक 20 वर्षों में हुई मात्र तीन बैठकों के साथ इसकी विकास गति अत्यंत धीमी रही है। हाल के कुछ वर्षों में भारत के सार्क समूह से ज्यादा बिम्सटेक को महत्व दिए जाने के साथ ही संगठन की हलचल तेज हुई है।

वर्तमान में लिए गए निर्णय –

  • विदेश मंत्रियों ने बिम्सटेक चार्टर के मसौदे को मंजूरी दे दी है। इसको जल्द अपनाने की सिफारिश की है।
  • मंत्रियों ने ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी के मास्टर प्लान के लिए अपना समर्थन दिया है, जिसे अगले शिखर सम्मेलन में अपनाया जाएगा।
  • आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता, राजनयिक अकादमियों के बीच सहयोग और कोलंबो में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा की स्थापना से संबंधित तीन समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयारी पूरी कर ली गई है।

क्या कमी रही –

  • 2018 को फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा किए गए अध्ययन ने सुझाव दिया था कि बिम्सटेक को वास्तविक बदलाव लाने के लिए व्यापक मुक्त व्यापार समझौते की तत्काल आवश्यकता है। आदर्श रूप से इसे माल, सेवाओं और निवेश में व्यापार को कवर करना चाहिए। विनियामक सामंजस्य को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाएं विकसित करने वाली नीतियां अपनाना और गैर-शुल्क बाधाओं को खत्म करना चाहिए।
  • इसके अलावा इन सात देशों के जीवंत व्यापारिक समुदायों को उत्साहित और संलग्न करने, उनके बीच संवाद, बातचीत और लेनदेन का विस्तार करने का प्रयास करने की कमी रही।
  • बिम्सटेक मुक्त क्षेत्र फ्रेमवर्क समझौते पर अभी भी कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है।

बाधाएं क्या हैं –

  • एक मजबूत बिम्सटेक के लिए सभी सदस्य देशों के बीच सौहार्दपूर्ण और तनाव-मुक्त द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने की आवश्यकता है। हाल के वर्षों में भारत-नेपाल, भारत-श्रीलंका और बांग्लादेश-म्यांमार के संबंधों को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया है।
  • सार्क पर अनिश्चितिता से जटिलताएं बढ़ रही हैं। नेपाल और श्रीलंका चाहते हैं कि सार्क सम्मेलन को पुनर्जीवित किया जाए।
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई जगत में चीन की निर्णायक घुसपैठ ने अस्थिरता पैदा कर रखी है। समूह में चीन की किसी प्रकार की भूमिका को स्वीकार करने के लिए न तो भारत तैयार है, और न ही उसके मित्र राष्ट्र तैयार हैं।
  • म्यांमार में सैन्य तख्तापलट, प्रदर्शनकारियों पर क्रूर कार्रवाई के कारण चुनौतियों का एक नया दौर पैदा हुआ है।

यह सच है कि बिम्सटेक के देशों ने मानवीय सहायता, आपदा राहत और सुरक्षा में बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, जिसमें आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और तटीय सुरक्षा सहयोग शामिल हैं। फिर भी समूह के देशों के बीच सहयोग और क्षेत्रीय एकीकरण के स्तर को बढाने में प्रतिमान-बदलाव को प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित राजीव भाटिया के लेख पर आधारित। 14 अप्रैल, 2021