भारतीय अंतरिक्ष की व्यावसायिक कंपनी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड
Date:26-03-21 To Download Click Here.
हाल ही में ब्राजील के एमेज़ोनिया-1 नामक उपग्रह के श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरूआत हुई है। 637 कि.ग्रा. का यह उपग्रह, अंतरिक्ष विभाग की व्यावसायिक कंपनी, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड का पहला मिशन है। इससे पहले भी इसरो के इस मंच ने दो अन्य उपग्रहों को प्रक्षेपित किया था। परंतु वे भारतीय उपग्रह थे। इस मिशन में कुल 19 उपग्रहों को एक साथ प्रक्षेपित किया गया है।
अभी तक भारत ने 34 देशों के 342 विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है। इन्हें पोलर उपग्रह प्रक्षेपण व्हीकल के माध्यम से इसरो के ही एनट्रिक्स कॉर्पोरेशन से प्रक्षेपित किया गया था। फिलहाल इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एण्ड ऑथराइजेशन सेंटर, जो कि एक नियामक संस्था है और निजी अंतरिक्ष कंपनियों के बीच विवादों को सुलझाने का काम करती है, के गठन के बाद से अंतरिक्ष क्षेत्र के व्यावसायिक पहलू का उपयोग किया जा रहा है।
ज्ञातव्य हो कि इसरो के प्रक्षेपण और उपग्रह के बुनियादी ढांचे के विकास में निजी क्षेत्र अनेक सेवाएं देता रहा है, और आगे भी देने को तैयार है। इनमें से कई कंपनियां अपने-अपने उपग्रहों को (जो कि विभिन्न आयामों के हो सकते है) प्रक्षेपित करना चाहती हैं, और इसरो के साथ उनका अनुभव हमेशा सहज नहीं रहा है। इनमें सबसे प्रमुख विवाद देवस मल्टीमीडिया का रहा है।
कहा जा रहा है कि देवस-एंट्रिक्स विवाद के बाद न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड को इसलिए लाया गया, ताकि भारत में अंतरिक्ष उद्योग की संभावना को बरकरार रखा जा सके। अभी तक अंतरिक्ष एपलिकेशन और मैपिंग की संभावनाओं को पूरी तरह से खंगाला जाना बाकी है। एन एस आई एल के पास एक व्यापक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम हैं, और यह अंतरिक्ष-संबंधित उद्योगों से जुड़े सहयोग में शामिल रहेगा। इसे न सिर्फ इसरो की तकनीकों के व्यावसीकरण का आधार बनाकर रखा जाएगा, बल्कि अपने आप में भी यह, इस क्षेत्र से जुड़े आयामों के विस्तार में योगदान देगा और व्यापार के नए अवसर तलाशेगा। यह भी देखना जरूरी है कि यह स्टार्ट-अप मोड में चलता रहे। इसका उपयोग अंतरिक्ष के स्टार्ट अप को ग्रामीण भारत तक पहुंचाने के लिए किया जाना चाहिए, जिससे भारत के कोने-कोने के युवाओं को अंतरिक्ष एप्लीकेशन और विज्ञान में भविष्य बनाने की प्रेरणा और सुविधा प्रदान की जा सके।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 मार्च, 2021