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भारत में पेयजल की कमी से संबंधित कुछ तथ्य
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- हाल ही में भारत में मीठे पानी की उपलब्धता से संबंधित दो रिपोर्ट आई हैं। इंटरगवर्नमेन्टल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज और संसदीय स्थायी समिति ने भारत में पेयजल संकट के गहराने पर चेतावनी दी है।
- संसदीय समिति ने भारत के भू-जल से संबंधित कुछ डेटा प्रस्तुत किए हैं। पीने का पानी की 80% और कृषि-सिंचाई की 67% जरूरत को भूजल पूरा करता है। लगभग 89% सिंचाई के लिए वार्षिक रूप से 218 अरब घन मीटर भूजल निकाला जाता है।
- आईपीसीसी की रिपोर्ट बताती है कि ग्लोबल वार्मिंग 1.5°c के बिंदु को भी छू रही है। सामान्यतः यह 1.1°c ही मानी जा सकती है, लेकिन इन बिंदु पर भी जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाएं चुनौती बनी हुई है। इसका प्रभाव मीठे पानी के स्रोतों पर भी पड़ रहा है। अतः भारत को सावधान होने की जरूरत है।
- सिंचाई के लिए भूजल के उपयोग को कम करना एक उपाय हो सकता है। इसके लिए सिंचाई के पैटर्न में परिवर्तन किया जा सकता है। धान और गन्ने की फसल में 60% से अधिक पानी लग जाता है।
भारत के तीन राज्यों में सबसे ज्यादा भूजल का उपयोग होता है। इनमें भी पंजाब और हरियाणा सबसे ऊपर हैं। पंजाब में धान के लिए सबसे ज्यादा पानी लगता है। पंजाब के लिए यह फसल उपयुक्त नहीं है। फिर भी इसे यहाँ बड़ी मात्रा में उगाया जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य और मुफ्त बिजली के सरकारी प्रोत्साहन से किसान, इन्ही फसलों के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं।
भारत की कृषि नीति ऐसी होनी चाहिए, जो क्षेत्र-विशिष्ट फसलों के लिए किसानों को बढ़ावा दे सके। इस नीति में भूजल के संरक्षण पर राज्य-सरकारों को भी सब्सिडी जैसा कोई प्रोत्साहन देना होगा। इसका सीधा सा अर्थ है कि राजनीतिक दलों को कुल पैदावार और कुल कृषि सब्सिडी के आंकड़ों से बाहर निकलकर भू-जल संरक्षण को मुख्य मुद्दा बनाना होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 22 मार्च, 2023