
भारत में पैदल चलने वालों के लिए कम होती जगह
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भारत में पैदल चलने वालों के लिए सड़कों पर जगह नहीं है। फुटपाथों का बुरा हाल है। इसके कई नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
कुछ बिंदु –
- हाल ही में परिवहन अनुसंधान और चोट निवारण केंद्र आईआईटी दिल्ली ने ‘सड़क सुरक्षा पर भारत की स्थिति‘ रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार 2019 और 2023 के बीच लगभग 8 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए हैं। इनमें से 1.5 लाख पैदल यात्री थे।
- शहर बड़े और घने होते जा रहे हैं। लेकिन फुटपाथ अक्सर टूटे हुए, छोटे-मोटे ठेलों और दुकानों से भरे हुए, वाहनों की पार्किंग वगैरह से चलने लायक बचे नहीं रहते हैं।
- विकसित राष्ट्रों का निर्माण कारों के इर्द-गिर्द नहीं, बल्कि लोगों के इर्द-गिर्द होता है। इनमें पैदल की 15 मिनट दूरी पर बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। इसका दूरगामी प्रभाव स्वच्छ हवा, बेहतर स्वास्थ्य, कम भीड़भाड़ वाला यातायात और स्वस्थ्य नागरिक होते हैं।
- आरामदायक, चौड़ी रोशन सड़कें और फुटपाथ होने से अपराध में कमी आती है। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए शहर सुरक्षित बनते हैं। स्थानीय व्यवसाय बढ़ता है। सार्वजनिक जीवन बढ़ने से खुशहाली आती है।
यदि भारत के राज्यों की बात करें, तो उनमें महाराष्ट्र में पैदल यात्रियों का कुछ अधिक ध्यान रखा गया है। इसके शहरी क्षेत्रों में 73% में फुटपाथ बनाए गए हैं। लेकिन ये कितने उपयोगी हैं, इसका कोई आंकड़ा नहीं है।
पैदल चलने वालों के लिए ढाँचे का विकास एक बुनियादी आवश्यकता है। एक विकसित राष्ट्र के लिए ऐसी सुविधा अनिवार्यता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 मई, 2025