भारत का सिकुडता अनौपचारिक क्षेत्र

Afeias
30 Nov 2021
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विश्व में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है। इस मामले में 2018 तक लगाए गये अनुमान के अनुसार भारत में 52% अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का संकेत मिलता है। जबकि विश्व मुद्रा कोष 2020 के अनुमान के अनुसार यूरोप में यह सकल घरेलू उत्पाद का 20%, तथा सब-सहारा अफ्रीका और लेटिन अमेरिका में 34% है। भारत के संदर्भ में यह अनुमान राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा प्रस्तुत विवरण पर आधारित है, जो बहुत सीमित कार्यप्रणाली पर कार्य करता रहा।

अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को कैसे मापा जाता है ?

  • इसके आकार का अनुमान लगाना हमेशा मुश्किल रहा है। इसे मापने के लिए विश्व स्तर पर स्वीकृत सांख्यिकीय ढांचा अभी भी प्रतीक्षित है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्यरत लोगों का बड़ा समूह कृषि और एमएसएमई या लघु उद्योगों में है। इसके लिए भारत ने ई-श्रम पोर्टल शुरू किया है, जो भारत में असंगठित रोजगार का एक व्यापक डेटाबेस तैयार कर रहा है।
  • डिजिटल फुटप्रिंट माध्मम से अनौपचारिक क्षेत्र की खपत को देखकर पता लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक अनौपचारिक क्षेत्र के व्यक्ति को शैम्पू के सैशे या ग्लूकोज बिस्किट के पैकेट की खरीद के माध्यम से चिन्हित किया जा सकता है। इसी तरह, एक छोटी इकाई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में विक्रेता हो सकती है, और यूपीआई आधारित भुगतान स्वीकार कर सकती है। दुर्भाग्य से, डिजिटल बुनियादी ढांचे में ऐसे सामाजिक रूझान को समर्थन नहीं दिया गया है, जिसके कारण आर्थिक गतिविधि को मापने में प्रशासनिक डेटा असफल हो जाता है।

डेटा से क्या पता चलता है ?

  • ई-श्रम पोर्टल के अनुसार, भारत के अनुमानित 34.4 करोड़ असंगठित श्रमिकों में से 6.6 करोड़ ने दो महीने में ही पंजीकरण करा लिया है। अगर हम इनके उपभोग का अनुमान लगाएं, तो वह 8 लाख करोड़ रु. होगा।
  • इसी प्रकार नेशनल सैंपल सर्वे के 73वें दौर के अनुसार, वित्त वर्ष 2016 में 633.9 लाख एमएसएमई थे, जो अनिगमित व गैर कृषिकर्म वाले थे। अगस्त 2018 से मार्च 2021 तक इनमें से 499.4 लाख एमएसएमई निगमित हो चुके थे। 494 लाख के लगभग एमएसएमई अब जीएसटी के दायरे में हैं।
  • कर्मचारी भविष्य निधि ( ईपीएफओ ) पोर्टल से पता चलता है कि डेटा के ऑनलाइन होने से लेकर अब तक 2.25 लाख बिजनेस यूनिट औपचारिक क्षेत्र में आ चुके हैं। इसका अर्थ 36.6 लाख नौकरियों और 64,000 करोड़ रु. की खपत का औपचारिक होना कहा जा सकता है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड से 4.6 लाख करोड़ के कृषि-ऋण के औपचारिक होने का पता चलता है।

डिजीटल ढांचे की क्या भूमिका है ?

  • सर्वेक्षण और प्रशासनिक कर-डेटा की निर्भरता को कम करने के लिए मैक्रो-डिजिटल फुटप्रिंट का लाभ उठाने की आवश्यता है।
  • कोविड के बाद से यूपीआई के माध्यम से लेन-देन बहुत बढ़ा है। क्रेडिट और डेबिट कार्ड के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है।
  • फ्यूल ट्रांजैक्शन भी नकदी से डिजिटल की ओर जा रहा है।
  • महामारी के दौरान लगभग एक लाख करोड़ रुपए की वित्तीय बचत इक्विटी बाजारों में चली गई है।

यह विडंबना ही है कि भारत के पास जीएसटी डेटा का उपयोग करके जीडीपी को मापने की कोई प्रणाली नहीं है। हमें इस दिशा में और आगे बढ़ने की आवश्यकता है। वास्तव में, भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को औपचारिक अर्थव्यवस्था का मात्र 15-20% ही कहा जाना चाहिए। इसके सही अनुमान के लिए भारत को ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सौम्य कांति घोष और दीप नारायण मुखर्जी के लेख पर आधारित। 9 नवम्बर, 2021