भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम व निजी क्षेत्र की भागीदारी

Afeias
19 Jul 2025
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परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का इतिहास – 1950 में होमी भाभा द्वारा पहला परमाणु कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य ऊर्जा में स्वदेशी तरीके से आत्मनिर्भर बनना था। इसके लिए उन्होंने प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर तथा देश के बड़े थोरियम भंडार का प्रयोग किया। 1969 में पहला तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित हुआ। लेकिन 1974 से प्रतिबंधों, सीमित यूरेनियम भंडार, तकनीकी बाधाओं और नीतिगत सतर्कता के कारण यह गति धीमी हो गई। भारत की 466 गीगावाट बिजली क्षमता में सिर्फ 8.8 गीगावॉट ही परमाणु ऊर्जा का योगदान है।

2005 में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश के मध्य असैन्य परमाणु समझौता हुआ था।

परमाणु ऊर्जा के लिए हमारा भविष्य का लक्ष्य – 2070 तक हम शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। इसीलिए 2047 तक हमने 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा का लक्ष्य रखा है। इसके लिए सरकार निजी क्षेत्र को भी आमंत्रित कर रही है।

स्माल माडॅ्यूलर रिएक्टर –

ये 300 मेगावाट की क्षमता वाले कारखानों में बने रिएक्टर होते हैं। 2025-26 के बजट में 2033 तक पांच स्वदेशी एसएमआर के लिए 20000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। विद्युत मंत्रालय की सलाह है कि 10 वर्षों में कोयला आधारित उत्पादन इकाइयों को बंद कर दिया जाए। इनकी जगह पर एसएमआर लगाए जा सकते हैं, जिनसे 100 में 41 गीगावॉट का योगदान मिलेगा।

 फास्ट ब्रीडर रिएक्टर –

100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा के लक्ष्य में एफवीआर से 5 गीगावॉट शामिल किया जा सकता है। यह तकनीकि सिर्फ रूस में प्रयोग होती है। भारतीय विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा तमिलनाडु के कलपक्कम् में पहला प्रोटोटाइप एफबीआर विकसित किया जा रहा है। इसके ईधन में प्लूटोनियम का उपयोग होता है, और यह सामान्य यूरेनियम को नए नाभिकीय ईंधन में बदल देता है। इससे अधिक ऊर्जा मिलती है।

परमाणु ऊर्जा में निजी भागीदारी –

यह अब केवल सरकार के एकाधिकार में नहीं है। टाटा व अदाणी जैसे निजी क्षेत्र भी अब परमाणु इकाइयाँ स्थापित कर रहे हैं। इसमें भारत को वैश्विक भागीदारी भी प्राप्त हो रही है। भारत विश्व के दूसरे देशों के लिए परमाणु ऊर्जा का बाजार भी बन सकता है।

परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन –

  • पहले संशोधन के तहत परमाणु दायित्व कानून के प्रावधानों को आसान बनाया जाएगा। इससे वेंडर की देनदारी प्रभावी रूप से सीमित हो जाएगी।
  • दूसरा संशोधन निजी कंपनियों को नियामकीय सुरक्षा उपायों के अधीन, परमाणु संयंत्रों का निर्माण, सहअस्तित्व या संचालन करने की अनुमति देगा।

सरकार इसमें 49% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है।

आगे की राह –

  • परमाणु ऊर्जा मंहगी है। इसीलिए निजी निवेशको प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • व्यवहारता अंतर फंडिंग जिसका उपयोग अन्य बुनियादी ढांचों के लिए किया गया, परमाणु ऊर्जा के लिए प्रयोग हो, जिससे आरंभिक लागत कम लगे।
  • दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौते, सॉवरिन गारंटी, तथा हरित ऊर्जा वर्गीकरण निवेश के जोखिम को कम करने में मदद करेंगे।
  • ईंधन के लिए यूरेनियम आपूर्ति का आश्वासन जरूरी है।

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