भारत-ईरान के उलझे संबंध
To Download Click Here.
कुछ समय से ईरान और भारत के संबंधों में दूरी देखी जा रही है। लेकिन हाल ही में हमारे विदेश मंत्री ने ईरान की यात्रा के दौरान चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे पर चर्चा की है। इससे लगता है कि बुनियादी ढांचा सहयोग पर फिर से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। दूसरी ओर, लाल सागर में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के हमलों ने दोनों देशों के संबंधों को मुश्किल स्थिति में पहुंचा दिया है।
कुछ बिंदु –
- भारत ने जब से ईरान से तेल आयात बंद किया है, तब से संबंध जटिल हो चुके थे। अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु समझौते से हाथ खींचकर उस पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए थे। इससे चाबहार योजना पर भी भारी प्रभाव पड़ा था।
- इन स्थितियों का लाभ चीन ने उठाया। उसने ईरान से 25 वर्षों के लिए व्यापक सहयोग समझौता कर लिया है। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद वह ईरान से तेल खरीद रहा है।
- इस पूरे प्रकरण में अमेरिका का अफगानिस्तान से अचानक हाथ खींच लेना भी शामिल है। इसके साथ ही भारत की अफगानिस्तान से संबंधित रणनीतिक योजनाएं खटाई में पड़ गईं।
- फिलहाल भारत के अरब देशों के साथ संबंधों में सुधार हो रहा है। वहीं अरब देशों की नजदीकी इजरायल से बढ़ रही है। इस प्रकार से भारत-अरब देश-इजरायल की तिकड़ी जैसी बन रही है। यह ईरान के लिए और भी चिढ़ने वाली बात है। ऐसे में भारत आईटूयूटू ( इंडिया, इजरायल, यू.एस.यूएई) और ईरान की की ‘प्रतिरोधी की धुरी’ या ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ के बीच फंसा हुआ सा है।
जहाँ तक अरब राष्ट्रों के आधुनिकीकरण की पहल का सवाल है, भारत को अरब और अमेरिकी साझेदारी पर अधिक ध्यान देना चाहिए। दूसरी ओर, ईरान पर लगाए प्रतिबंध जल्द उठाए जाने वाले नही हैं। उसकी रूस और चीन से साझेदारी इस बीच बढ़ती रहेगी। इस बीच भारत को ईरान से संबंधों में सतर्कता बरतनी चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 16 जनवरी, 2024