भारत में महिला कार्यबल की भागीदारी से जुड़े कुछ तथ्य
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भारत के कार्यबल में महिलाओं की घटती भागीदारी के बारे में कहा जा रहा है (विशेषकर बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे छोटे देशों की तुलना में)। आंकड़ों की सच्चाई कुछ और ही बताती है –
- भारत के कुल पायलटों में से 15% महिलाएं हैं। यह प्रतिशत पूरे विश्व की तुलना में सर्वाधिक है।
- विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 42.7% महिलाएं 2018 में एसटीईएम (साइंस, टेक्नॉलाजी, इंजीनीयरिंग, मैथ्स) स्नातक रही हैं।
- भारत के पुरूषों की तुलना में अधिक महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं।
- इन आंकड़ों के बावजूद भारत के कार्यबल में महिलाओं की घटती भागीदारी के पीछे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का श्रम की परिभाषा में बदलाव का होना है। संगठन के अनुसार वेतन या लाभ कमाने वाला श्रम ही इस वर्ग में शामिल किया जा सकता है। भारत में इसका प्रभाव यह हुआ कि घरेलू सदस्यों और पशुओं की देखभाल और कामों में लगी महिलाओं की गिनती कार्यबल से बाहर कर दी गई।
- भारत में शिक्षा प्राप्त कर रही महिलाओं का भी एक बड़ा प्रतिशत है। इनको गणना से अलग रखा गया है।
सच्चाई यह है कि भारत में 25-30 आयुवर्ग के युवा, बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे है। इनमें महिलाओं की संख्या अधिक है। इनमें से अधिकांश के कार्यबल में शामिल होने की संभावना है। श्रीलंका और बांग्लादेश के आंकड़ों में 35 वर्ष के आसपास की महिलाओं के आँकड़े लिए गए हैं। इससे अंतर स्पष्ट हो जाता है।
- इसके अलावा भारत में महिलाओं की प्रजनन दर, 2.1 की प्रतिस्थापन दर से कम होकर और नीचे की तरफ जा रही है। इससे कार्यबल में भागीदारी की संभावना बढ़ती है।
- भारत में चाइल्ड-केयर के प्रति अलग रवैया अपनाया जा रहा है। क्रेंच, झूलाघर और आंगनबाड़ी से महिलाओं को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी कम हो जाती है।
भारत में बढ़ते शिक्षा के प्रसार के बाद अब महिला श्रम भागीदारी की संभावना और भी अच्छी है। हमारे नीति निर्माताओं, अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इसे स्वीकार करके पहचानना शुरू करना चाहिए। इसके बाद स्थिति में बदलाव साफ दिखाई देगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सुरजीत एस भल्ला और तीर्थतनमय रॉय के लेख पर आधारित। 31 मार्च, 2023