भारत में बढ़ते मोटापे से संबंधित तथ्य
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भारत के स्वास्थ्य के संदर्भ में हम अक्सर अल्पपोषण और कुपोषण की बात करते हैं। इन सबसे हम मोटापे से पीड़ित भारतीयों की बढ़ती संख्या का संज्ञान नहीं लेते हैं। इससे जुड़े कुछ बिंदु –
- लैंसेट के एक अध्ययन के अनुसार, विश्व स्तर पर एक अरब से अधिक लोग मोटापे के शिकार हैं। यानि 8 में से एक व्यक्ति मोटापे की श्रेणी में आता है।
- 1990 के बाद से वयस्कों में मोटापा दोगुना हो गया है। 5-19 वर्ष के बच्चों और किशोरों में यह चौगुना हो गया है। भारत में भी यही स्थिति है।
- बल्कि भारत में तो मोटापे के साथ कुपोषण का दोहरा बोझ है।
- इसके अलावा, मोटापे से बढ़ने वाली हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों का भी बहुत बोझ है।
- मोटापा केवल शहरी अमीरों की बीमारी नहीं है।
- 1990 से लेकर 2022 तक भारत में मोटापे में आने वाले लोग 35 लाख से बढ़कर 7 करोड़ हो गए हैं।
- लोगों में बढ़ती समृद्धि के साथ ही वसा, चीनी और नमक से युक्त प्रसंस्कृत पदार्थों का उपयोग परिवारों में ज्यादा बढ़ गया है। 2022-23 के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण से पता चलता है कि ग्रामीण परिवार भी प्रसंस्कृत खाद्य सामग्री में शहरी परिवारों के बराबर ही खर्च करते हैं।
गतिहीन जीवनशैली अस्वस्थ्ता को बढ़ाती है। मोटापे और कुपोषण से निपटने के लिए शारीरिक गतिविधि और फल, सब्जी-दालों की खपत बढ़ाने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि वह फूड एण्ड बेवेरेज (विशेष रूप से बच्चों में लोकप्रिय) में हानिकारक पदार्थों की लेबलिंग को स्पष्ट रखे। स्वस्थ भोजन और व्यायाम के लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 07 मार्च, 2024