भारत के मानसिक स्वास्थ्य पर कुछ बिंदु
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- भारत में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। 2022 की आत्महत्याओं का राष्ट्रीय दैनिक औसत लगभग 500 बताया गया है।
- यह बताता है कि देश में लंबे समय से चले आ रहे व्यक्तिगत तनाव को कम करने के लिए लोगों के पास तरीके नहीं हैं।
- देश में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तीन बड़ी खामियां हैं – मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का कमजोर होना, प्रासंगिक कानून का अस्पष्ट होना और समाज में फैली अनेक तरह की वर्जनाएं, जो लोगों को मदद मांगने से रोकती हैं।
- 2022 में आम्महत्या से मरने वालों में से एक तिहाई किसान एवं दिहाड़ी मजदूर थे। दूसरे समूह में 13,000 से अधिक छात्र हैं।
- 2017 में मानसिक स्वास्थ्य कानून की आईपीसी धारा 309 में आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने इस पर यह भी कहा है कि किसी व्यक्ति को उकसाने के लिए दोषी ठहराने के लिए उसकी आपराधिक मंशा और उकसावे की घटनाए आत्महत्या के समय के करीब होनी चाहिए।
- डेटा कहता है कि 32% आत्महत्याएं पारिवारिक समस्याओं के कारण होती हैं।
- आत्महत्या से होने वाली लगभग 35% मौतों में 18-30 वर्ष के लोग हैं।
यह हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश का हिस्सा है, जिसके लिए वित्तीय से लेकर व्यक्तिगत स्तर तक पर निवेश किया जाना चाहिए। आत्महत्याओं को रोकने के लिए देश में हेल्पलाइन और सहायता नेटवर्क चल रहे हैं। लेकिन ये सभी निजी प्रयास हैं, और अपर्याप्त हैं। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोटा जैसी आत्महत्याओं के लिए निरंतर मनोरोग मूल्यांकन और देखभाल के साथ विशिष्ट रणनीति की आवश्यकता है। उम्मीद की जा सकती है कि इस दिशा में और सक्रिय प्रयास किए जा सकेंगे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 दिसम्बर 2023