भारत-अमेरिकी सहयोग समझौते
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हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक शिखर सम्मेलन में कई समझौते किए हैं। इन्हें 2005 में घोषित मूल रणनीतिक लक्ष्य को सार्वजनिक रूप से पुनर्जीवित करने के रूप में देखा जा रहा है। यूं तो इन समझौतों को भारत को एक मजबूत लोकतांत्रिक शक्ति बनाने के लिए किया गया है, लेकिन इसका उद्देश्य चीन को संतुलित करना और अमेरिका के लिए एशिया में एक आर्थिक भागीदार खड़ा करना है।
आज दुनिया का असली संघर्ष इस बात पर है कि महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों में नेतृत्व कौन करता है। यदि चीन एआई, नवीकरणीय ऊर्जा आदि में दुनिया का नेतृत्व कर ले जाता है, तो यह अमेरिका को स्वीकार्य नहीं होगा। इससे भारत के लिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही कारण है कि समझौतों का संबंध अधिकतर प्रौद्योगिकी और तकनीक से जुड़ा हुआ है। कुछ बिंदु –
- नासा अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करेगा। अगले साल अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर एक संयुक्त मिशन भेजने की योजना है।
- सेमीकंडक्टर संयंत्रों में काम करने के लिए 60,000 भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षण देगा।
- अमेरिकी उद्योग जगत, भारतीय कंपनियों को अपनी सिलिकॉन आपूर्ति श्रृंखला में शामिल करने के तरीकों पर काम करेगा।
- भविष्य में चीनी टेलीकॉम उपकरणों के उपयोग से बचने के लिए भारत के 6जी और यूएस नेक्स्ट जी का अलायंस किया जाएगा।
- एआई और क्वांटम कंप्यूटिंग पर संयुक्त योजनाएं। इससे भारत में अमेरिका का निवेश बढ़ेगा। जीई 414 जेट इंजन में 11 महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण ‘भारत में निवेश’ नीति का उदाहरण है।
- भारत अपने हथियार खुद बनाना चाहता है। लेकिन मेक.इन.इंडिया रक्षा क्षमता के रास्ते पर विदेशी साझेदारों की भी जरूरत है। जी ई 414 डील से अमेरिका ने रक्षा सहयोग पर मुहर लगा दी है। इस दिशा में आगे और भी समझौते आ रहे हैं।
- डिफेंस इंडस्ट्रीयल कॉपरेशन रोडमैप की घोषणा की जा चुकी है। यह रक्षा कंपनियों को उन्नत रक्षा प्रणालियों के सह-उत्पादन के साथ-साथ प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान, परिक्षण और प्रोटोटाइप में मदद करने के लिए भेजेगा।
इस शिखर सम्मेलन के साथ भारत ने अनंत संभावनाएं अर्जित की है। वैश्विक डिजिटल बुनियादी ढांचे पर विलय का कारण यह है कि भारत इस क्षेत्र में सबसे अधिक योगदान कर सकता है। अमेरिका और चीन के बीच ग्लोबल साउथ में जो तनाव का वातावरण है, उसमें भारत का यह योगदान महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। अमेरिका यह जानता है। यही कारण है कि भारत के बारे में बात करते हुए वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ‘दीर्घ दृष्टिकोण’ रखने पर जोर देते हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित प्रमित पाल चौधरी के लेख पर आधारित। 24 जून, 2023