बैडमिंटन में देश की सफलता का राज
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हाल ही में भारतीय पुरूष बैडमिंटन टीम ने थॉमस कप जीता है। भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। भारतीय शटलरों ने न केवल थॉमस कप को जीतने के लिए शानदार प्रदर्शन किया है, बल्कि इस कप को 14 बार जीतने वाली इंडोनेशियाई टीम को हराया है।
भारतीय बैडमिंटन में 2010 में कॉमनवेल्थ का स्वर्णपदक जीतकर सायना नेहवाल ने उपलब्धि की शुरूआत की थी। इसके बाद लंदन ओलंपिक में उन्होंने ही कांस्य पदक जीता। जीत की इस श्रृंखला की कड़ी के रूप में पी.वी. सिंधु का नाम आया।
बैडमिंटन में मिल रही इस अद्वितीय सफलता के पीछे दो मुख्य कारण काम कर रहे हैं, जिनका अनुसरण करते हुए अन्य खेलों में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर और उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है –
- पिछले कुछ वर्षों में देश में बैडमिंटन के लिए दो हब उभरे हैं। इनमें हैदराबाद की गोपीचंद अकादमी और बेंगलुरू की प्रकाश पादुकोण अकादमी है। इन दोनों ही अकादमियों से भारत के शीर्ष शटलर तैयार हो रहे हैं।
इसका कारण गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे की उपलब्धता है। भारत के अन्य प्रांतों में भी इस प्रकार का विस्तार किया जा सकता है।
- बैडमिंटन की सफलता कुछ प्रमुख दिग्गजों के प्रयासों पर टिकी है। वे खिलाड़ियों का चयन, मार्गदर्शन और उन्हें चैंपियन में बदलने का काम करते हैं। अन्य खेलों में भी इस प्रकार की नीति अपनाई जा सकती है।
भारत के आकार और युवाओं की शक्ति को देखते हुए, कोई कारण नहीं है कि हम खेल में एक महाशक्ति के रूप में न उभर सकें। प्रयास जारी रहने चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 मई, 2022