बहुलवादी नागरिक समाज
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नागरिक समाज पश्चिमी परपंरा की अवधारणा है, जो संप्रभु राज्य के एकाधिकार के अभियान को संतुलित करने के लिए प्रहरी का कार्य प्रदान करती है। भारत में अंग्रेजी भाषा के क्षेत्र में विशेष रूप से नागरिक समाज सक्रिय है, जिसमें अभिजात वर्ग के पुरूष, उच्च वर्ग एवं प्रमुख जातियाँ शामिल हैं। परंतु लोकप्रिय संप्रभुता के अधिकार के लिए अधिक सशक्त लोकतांत्रिक दावे वहाँ से उत्पन्न हुए हैं, जिन्हें हम गैर-अभिजात्य वर्ग के रूप में कह सकते हैं – किसान, श्रमिक समूह, मानव-अधिकार कार्यकर्ता, आदिवासी आंदोलन।
उदाहरण – पंजाब-हरियाणा-किसान आंदोलन, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं का देशव्यापी विरोध आदि।
संविधान लोकतंत्र में तभी तक जीवंत शक्ति बना रह सकता है, जब तक यह वाक्यांश “हम भारत के लोग“ को सभी नागरिक समझें एवं प्रभावी ढंग से सतर्क प्रतिभागियों के रूप में अपनी शक्ति का निर्वहन करें। भारत में एक प्रगतिशील नागरिक समाज केवल बहुलवादी नागरिक ही हो सकता है, यदि इसकी संरचना प्रत्येक सतुदाय की स्वतंत्र और समान भागीदारी पर हो।
किसी भी समुदाय को सामाजिक रूप से पिछड़ा या बौद्धिक रूप से हीन मानना अनिवार्य रूप से अज्ञात गौरव में बदल जाता है। दूसरे समुदायों के विचारों के साथ सहानुभूतिपूर्ण जुड़ाव के माध्यम से हम आपसी समझ की एक स्थिर नींव का निर्माण कर सकते हैं। और इस प्रकार वास्तविक एकजुटता की संभावनाएँ खोल सकते हैं। लोकतंत्र दूसरे की स्थिति को समझने का प्रयास ही तो है।
इस प्रकार बहुलवादी नागरिक समाज की दिशा में रास्ता ईमानदार और आत्मविश्लेषणात्मक संवाद के माध्यम से बनाया जाना चाहिए।
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