अनौपचारिक काम को औपचारिक बनाएं

Afeias
23 Sep 2020
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Date:23-09-20

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महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों को लेकर जो संकट उत्पन्न हुआ था , उसने देश के 80% ऐसे कार्यबल को लेकर सबका ध्यान आकर्षित किया है, जो औपचारिक क्षेत्र में कम वेतन और उच्च उत्पादकता पर काम कर रहा है। यह इनका ही महत्व है कि औपचारिक क्षेत्र के उद्योग अपने उच्च वेतन और कम उत्पादकता वाले श्रमिकों के साथ भी संतुलन बनाए हुए हैं। फिल्म “जॉली एल.एल.बी.” में नायक अरशद वारसी कोर्ट में ऐसे ही असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों या कामगारों के लिए दलील पेश करते हुए कहता है कि ‘कौन हैं ये लोग कहाँ से आते हैं और कहाँ चले जाते हैं ?’ वाकई यह विचाराधीन है।

महामारी का यह सकारात्मक पक्ष कहा जा सकता है कि आज अर्थव्यवस्था पर भावना  हावी हुई लगती है। तभी उद्योगपति अजीज प्रेमजी के साथ ही कई अन्य ने अनौपचारिक और औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के बीच वेतन की समानता के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा पर भी जोर दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि यह आज के 15:85 या 20:80 के अनुपात की जगह 50:50 का होना चाहिए।

इसके लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं –

  • कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों के यूनिवर्सल अकांउट नंबर की पोर्टेबिलिटी के द्वारा अनुबंध , दैनिक वेतनभोगी , आकस्मिक और निर्माण-श्रमिकों के महत्वपूर्ण पूल की सटीक पहचान की जानी चाहिए। उन्हें संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराएं।
  • राज्यों को चाहिए कि वे श्रम-कानूनों में सुधार करें। फिलहाल , राज्यों के श्रम-कानून में मात्र 20% श्रमिक ही आते हैं। इस संदर्भ में राज्य , उद्योगों के साथ मिलकर प्रवासी श्रमिकों के लिए ऐसा कोई पैकेज तैयार कर सकते हैं कि वे काम पर वापस आ सकें।

कुछ राज्यों ने विभिन्न अधिनियमों और योजनाओं के माध्यम से डेटा लेकर असंगठित श्रमिकों के लिए कार्ययोजनाएं बनानी प्रारंभ कर दी हैं। उन्होंने इन श्रमिकों को अनआर्गनाइज्ड वर्कर्स आइडेंटीफीकेशन नंबर्स भी देने शुरू कर दिए हैं। इससे जल्द ही , सभी सरकारी योजनाओं का लाभ इन श्रमिकों को भी दिया जा सकेगा।

उद्योगों , श्रमिकों और सरकार के हितों के अभिसरण से , अल्पकाल के लिए ही सही , परंतु एक सशक्त द्वार तैयार हो सकता है , जो भारत को क्षमता , समानता और लचीलेपन के साथ विकास की दिशा में ले जाएगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित गौरी कुमार के लेख पर आधारित। 7 सितम्बर , 2020