आर्थिक मंदी से निपटने के लिए तीन प्रमुख परिवर्तनों की जरूरत
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पूरे विश्व में आर्थिक मंदी की लहर छाई हुई है। इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को तीन प्रमुख परिवर्तन करने की आवश्यकता है। ये परिवर्तन हैं –
1) निजीकरण – सरकार को चाहिए कि निजीकरण के क्षेत्र में नौकरशाही की जड़ता को दूर करे। 2016 में, इसने 35 सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक विनिवेश की शुरूआत की थी। शार्टलिस्ट की गई फर्मों में से 24 अभी भी बिक्री की प्रक्रिया में फंसी हुई हैं। एयर इंडिया जैसे कुछ ही उपक्रम में लेनदेन समाप्त हुआ है। इसी तरह, सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों में से दो बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण में धीमी प्रगति हुई है। शेष के लेन-देन को पूरा करने से भारत सरकार के लिए पूंजी खुल जाएगी, और इसकी बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा।
2) कृषि में सुधार – राष्ट्रीय कृषि बाजार ( ई-नाम या ई एनएएम ) के लिए साझा मंच की क्षमता का पूरी तरह से दोहन नहीं किया गया है। 18 राज्यों में लगभग 1,000 मंडियां, 1.7 करोड़ से अधिक किसानों के साथ ई एनएएम प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत हैं। 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का व्यापार दर्ज किया गया है।
लेकिन इसकी संभावित जरूरतों को महसूस करते हुए लॉजिस्टिक्स और विवाद निपटान पर काम करने की जरूरत है।
3) व्यापार के मोर्चे पर – प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेन्टिव स्कीम का अधिकतम लाभ उठाने के लिए संरक्षणवादी दृष्टिकोण को त्यागने की जरूरत है। आर्थिक थिंकटैंक इक्रियर के हाल के अध्ययन से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर निर्माण सस्ते इनपुट पर निर्भर है। द्विपक्षीय व्यापार सौदों के बजाय मुक्त व्यापार समझौते किए जाने चाहिए। कस्टम ड्यूटी कम की जानी चाहिए।
अप्रैल-जून की तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद का 13.5 प्रतिशत भले ही औसत अपेक्षाओं से कम रहा हो, लेकिन कुछ संपर्क-गहन क्षेत्रों को छोड़कर बाकी अर्थव्यवस्था 2019 के बैंच मार्क से आगे निकल गई है। इसी बीच में आए वैश्विक परिवर्तनों के चलते भारत सरकार के सामने भी कई बाधाएं हैं। हमारी मध्यम अवधि की विकास संभावनाएं उज्जवल बनी हुई हैं, बशर्ते केंद्र और राज्य सरकारें सुधारों को शुरू करके उपरोक्त वर्णित तीन क्षेत्रों में काम करे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 सितम्बर, 2022