आधार में सुधार से विकास

Afeias
02 Dec 2020
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Date:02-12-20

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भारत जैसे कृषि प्रधान देश की गिरती अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कृषि को आधार बनाया जा सकता है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान भले ही 15-16% हो, परंतु इस क्षेत्र में संभावनाएं असीम हैं। कृषि क्षेत्र की कमियों को दूर करने के साथ-साथ अगर हम इसमें कुछ सुधारात्मक बिंदुओं को जोड़ दें, तो यह न केवल लाभ का सौदा बन सकती है, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान कर सकती है।

कृषि के तरीकों में बदलाव हेतु कुछ बिंदु-

  • रेन वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा सिंचाई के तरीके को बदला जाना चाहिए। अभी हम देश का 90% भूमिगत जल केवल सिंचाई में लगा रहे हैं। इसके दूसरे समाधान के रूप में माइक्रो-सिंचाई योजना कारगर सिद्ध हो रही है।

2014 में किए गए 13 राज्यों के एक सरकारी अध्ययन से पता चलता है कि माइक्रो-सिंचाई से उन्होंने पानी और खाद के उपयोग को न्यूनतम कर दिया है। साथ ही उपज में भी बढ़ोतरी हुई है।

  • पारिस्थितिकी से संबद्ध कृषि के द्वारा लागत कम की जा सकती है, श्रमिकों की संख्या बढ़ाई जा सकती है, और मृदा को नया जीवन दिया जा सकता है।

धारणीय कृषि पर 57 देशों में हुए 286 प्रयोगों के आधार पर कहा जा सकता है कि इससे औसत उपज में 79% की बढ़ोतरी देखी गई।

  • गर्मी प्रतिरोधी फसलों और उनके ज्ञान के प्रसार पर अधिक काम करने की आवश्यकता है।
  • कृषि में संस्थागत परिवर्तन की बहुत अधिक जरूरत है। हमारे खेतों का आकार पैमाने की अर्थव्यवस्था या बाजार में वर्चस्व स्थापित करने के लिहाज से बहुत छोटा है। हमें छोटी जोत के किसानों को छोटे-छोटे समूहों में सहकारी कृषि के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। 1960 के दौरान ऐसी कृषि के प्रयोग सफल भी रहे हैं। इसकी सफलता के लिए समान स्तर के किसानों के ऐसे समूह बनाए जाने चाहिए, जिनको आपस में एक-दूसरे पर विश्वास हो।

इस मामले में केरल का सफल उदाहरण दिया जा सकता है। यहाँ महिलाओं के 68000 कृषि समूह हैं। इनका औसत लाभ 1.2 लाख रुपये सालाना प्रति समूह रहा, जो राष्ट्रीय औसत लाभ का तीन गुना है। ऐसी समूह-कृषि का प्रचलन बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और तेलंगाना में भी है।

  • पशुधन, मत्स्य-पालन और वन से कृषि क्षेत्र को काफी लाभ मिल सकता है। भारत एक्वाकल्चर मछली का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसमें अनेक लोगों को रोजगार प्राप्त है, जिसमें 32% महिलाएं हैं। कृषि में पशुधन से होने वाला लाभ सबसे अधिक है।

देश के वन ‘गरीबों के सकल घरेलू उत्पाद’ (टीईईबी) में 47% का योगदान देते हैं। 1990 के बाद से जब सामुदायिक सहयोग के साथ संयुक्त वन प्रबंधन शुरू किया गया, तब से भू-क्षेत्र में वन 21.5% बढ़ गया है। वन संरक्षण और वृक्षारोपण, जैव विविधता की बहाली और पर्यावरण-पर्यटन के माध्यम से लाखों रोजगार उत्पन्न किए जा सकते हैं।

  • हमें कृषि और ग्रामीण गैर-कृषि संबंधों की मजबूती पर ध्यान देना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों की 61% आय गैर-कृषि कार्यों से होती है। कृषि उत्पाद प्रसंस्करण, मशीन टूल्स और एग्रो-मशीनरी, कृषि पर्यटन आदि में अपार संभावनाएं निहित हैं।

कृषि क्षेत्र के रूपांतरण और गैर कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ इसके तालमेल से ग्रामीण समुदाय को नई ऊर्जा मिल सकती है। यह ग्रामीण युवाओं के भविष्य को संवारेगी।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित बीना अग्रवाल के लेख पर आधारित। 18 नवम्बर, 2020