आधार को मतदाता सत्यापन के रूप में शामिल करने का आदेश
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हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए आधार कार्ड को वैध दस्तावेजों में शामिल करने का आदेश दिया है। यह आदेश अनेक अर्थों में बहुत महत्वपूर्ण है।
कुछ बिंदु –
- यह मतदान के मौलिक अधिकार की शानदार जीत है। साक्ष्य दर्शाते हैं कि बिहार की लगभग 90% आबादी के पास आधार कार्ड है, और इसे नागरिकता को प्रमाणित करने का आधार माना जाना चाहिए। इस निर्णय ने 65 लाख मतदाताओं में से उन लोगों को जीवनदान दिया, जिनके नाम गलत तरीके से हटा दिए गए थे।
- चुनाव आयोग का तर्क था कि आधार कार्ड निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा है कि आधार का उपयोग उसकी प्रामाणिकता के सत्यापन के अधीन किया जा सकता है।
- यह आदेश राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उन अपीलों को सही ठहराता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग का यह कदम न्यायालय के पूर्व दिशानिर्देशों का खंडन करता है।
- इस आदेश के बिहार से परे भी निहितार्थ हैं, और यह देश भर में प्रस्तावित अन्य सभी संशोधनों के लिए एक मिसाल कायम करता है। इससे चुनाव आयोग को यह स्पष्ट संदेश जाता है कि मतदाता सूची संशोधन का लक्ष्य सटीकता और समावेशिता पर होना चाहिए, न कि ऐसा; जिससे नागरिकों के अधिकार प्रभावित हों।
- इस आदेश से प्रेरित होकर चुनाव आयोग को एक अधिक मानवीय और गहन दृष्टिकोण अपनाते हुए मतदाता सूची का सत्यापन करना चाहिए। इससे भारत के लोकतंत्र की नींव मजबूत होगी।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 सितंबर, 2025