5 खरब डॉलर अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य -1

Afeias
12 Jul 2019
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Date:12-07-19

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प्रधानमंत्री ने 2024 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 5 खरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में यह 2.8 खरब डॉलर है। इस लक्ष्य को पाने का अर्थ है कि सकल घरेलू उत्पाद की वर्तमान बढ़त दर 6-7% को लगभग 10-11% तक बढ़ना होगा। इसके लिए अर्थव्यवस्था को सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ाने की आवश्यकता होगी।

  • इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबसे पहले तो अल्पकाल में अर्थव्यवस्था की धीमी गति से लेकर नीतिगत अक्षमता, एक संघीय राजनीति के कारण थोपे जाने वाले अवरोधों से लेकर राजकोषीय अवरोधों, मानव पूँजी के नीचे आने से लेकर हाई फाइनेंस में नियामक विफलताओं तक सभी मौजूदा नकारात्मकताओं को स्वीकार करना होगा।
  • इन सबके साथ यह पूछना भी जरूरी है कि आर्थिक स्थिति को बदलने के लिए सरकार जल्दी क्या कर सकती है।
  • इसके लिए सरकार को 1990 के मध्य में चलाई जा रही वृहत् आर्थिक नीतियों का अपनाना होगा। इनकी मदद से घरेलू उत्पाद के 7% की दर से बढ़ते रहने की संभावना है।
  • भारत सरकार को लघु अवधि में चारों ओर काम करना होगा। प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करके परिभाषित की जाने वाली समस्या पर ध्यान देना होगा। इन समस्याओं को पहचान कर इनसे संबंधित कुछ बड़ी योजनाओं की जल्दी शुरूआत करनी होगी। ये परियोजनाएं अन्य क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहन और संचालक का काम करेंगी।

          सरकार को चाहिए कि –

  • अधिक जटिल समस्याओं से सुलझाने की बजाय, कुछ अलग से समाधान लेकर आये। जैसे, मोदी शासनकाल के पहले दौर में ‘मेक इन इंडिया’ अधिक सफल नहीं रहा था। इसे भूमि अधिग्रहण सुधार पर छोड़ दिया गया था। अब पुनः इसकी शुरूआत करनी चाहिए। इसमें निवेश की भी बहुत कमी रही। सरकार को चाहिए कि कई स्रोतों से इसमें वृद्धि करे।
  • उद्योगों की सबसे बड़ी समस्या भूमि की है। इस अवरोध को दूर करने पर काम होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी कंपनियों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली भूमि को निर्माण कार्य के लिए भी उपलब्ध कराया जा सकता है। देश में ये कुछ ही हो सकती हैं, परन्तु आगे चलकर राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के लिए भी मिसाल बन सकती हैं।
  • कृषि के क्षेत्र के संकट को देखते हुए कहा जा सकता है कि अगर 2024 तक सभी मानसून अच्छे रहे, तब भी छोटे आकार के जोतों पर कृषि का कार्य लाभप्रद नहीं हो सकता। इसके लिए सबसे अच्छा यही है कि कुछ बहुत बड़े खेत तैयार किए जाएं, और इसके माध्यम से खेती को लाभदायक उद्यम बनाकर उदाहरण प्रस्तुत किया जाए। कृषिगत उद्यम के लिए किसानों से अच्छी कीमतों पर भूमि किराए पर ली जाए, और किसानों को अन्य रोजगार उपलब्ध कराए जाएं। भारत के संघीय ढांचे में इसे सीमित दायरे में ही किया जा सकता है। जितना भी संभव हो, उतना ही करके कम से कम कृषि संकट के निदान का एक द्वार तो तैयार किया ही जा सकता है।
  • उच्च विकास दर को बनाए रखने में हमारे बैंक सक्षम नहीं होंगे। एक तो इनकी संख्या कम है। दूसरे ये उन छोटे उद्यमों को ही ऋण देना चाहते हैं, जिनसे उद्यमिता की भरमार हो।

सरकार को चाहिए कि आरबीआई के साथ मिलकर कुछ छोटे निजी बैंकों के लिए लाइसेंस जारी करवाए, जिससे ये छोटे उद्योगों को अनिवार्य रूप से ऋण दें। छोटे उद्यमों के लिए ऋण की मात्रा बहुत अधिक है। छोटे निजी बैंकों के पास उधार लेने वाली की कोई कमी नहीं होगी। इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ते ही बैंकों के विस्तार से जुड़ा पूर्वाग्रह समाप्त हो जाएगा।

निर्माण, कृषि और बैंकिंग, तीन ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें काफी कुछ काम और सुधार किया जा सकता है। चारों ओर काम करके भी सकल घरेलू उत्पाद के दोहरे आँकड़ों को प्राप्त करने का लक्ष्य दुष्कर ही रहने का अंदेशा है। लेकिन इन कदमों के साथ एक स्पष्ट संदेश की उम्मीद की जा सकती है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित सौमीक चक्रवर्ती के लेख पर आधारित। 27 जून, 2019