15वें वित्त आयोग में शहरों के लिए प्रावधान
Date:30-04-21 To Download Click Here.
15वें वित्त आयोग (2021-26) की रिपोर्ट में राष्ट्रीय आर्थिक विकास और गरीबी कम करने की दिशा में शहरीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका बताई गई है। इसके साथ ही नए शहरों की परिधि में विस्तार की योजना पर जोर देने की मांग की गई है। शहरों से जुड़ी दीर्धकालीन चुनौतियों के लिए नीति निर्माण के साथ ही आवश्यक है कि निकट भविष्य से जुडे गंभीर मुद्दों पर ध्यान दिया जाए।
इस हेतु वित्त आयोग ने कुछ प्रगतिशील कदम भी उठाए हैं। जैसे (1) शहरी निकायों की वार्षिक आवंटन राशि में वृद्धि (2) शहरी पुंज केंद्रित दृष्टिकोण लेकर चलना , (3) शहरी निकायों के लिए राज्यों को अलग से अनुदान देना। जनसंख्या आधारित पैकेज बनाना तथा (4) स्वास्थ आपातकाल के लिए शहरी निकायों को सक्षम बनाने के उद्देश्य से अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराना।
वित्त आयोग की सिफारिशों से जुड़ी अनेक कमियां –
- वित्त आयोग ने सभी राज्यों के शहरीकरण के स्तर के बजाय ग्रामीण-शहरी जनसंख्या अनुपात के राष्ट्रीय औसत को आधार बनाकर शहरी निकायों की राशि आवंटन का जो निर्णय लिया है, उस आधार पर अधिक शहरीकरण वाले शहरों में शहरी निकायों को कम राशि प्राप्त होगी, और कम शहरी राज्यों के स्थानीय निकायों को अधिक राशि मिलेगी। इस प्रकार के असंतुलन को सुधारा जाना चाहिए।
- दस लाख से अधिक आबादी के शहरों का प्रदर्शन उनकी वायु गुणवत्ता में सुधार और शहरी पेयजल आपूर्ति, स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आदि मापदंडों के आधार पर मापे जाने से स्थानीय निकायों की स्थानीय जरूरतों के हिसाब से व्यय करने की स्वायत्तता पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
इससे स्थानीय निकाय मात्र कार्यान्वय करने वाली संस्था में तब्दील हो जाएंगे।
- वर्ग-1 के शहरों के खराब प्रदर्शन पर कैटेगरी-2 के अच्छा प्रदर्शन कर रहे शहरों को मेट्रोपॉलिटन चैलेंज फंड की राशि देने का प्रावधान है।
- शहरी पुंज आधारित व्यवस्था में कैटेगरी-1 के शहरों में से ही किसी एक शहरी निकाय को नोडल एजेंसी बना देना उचित नहीं होगा।
- जीएसटी में सम्मिलित करों से हुए नुकसान की भरपाई के लिए शहरी निकायों को कोई प्रावधान नहीं दिया गया है।
15वें वित्त आयोग ने शहरी प्रबंधन सुधार हेतु प्रदर्शन आधरित प्रोत्साहन जैसे मंत्र से निःसंदेह कुछ बेहतर करने का प्रयास किया है। इसकी खामियों को तुरंत संबोधित किया जाना चाहिए, जिससे कि शहरी निकायों की स्वायत्तता पर आंच न आए और वे स्थानीय समस्याओं को प्राथमिकता पर रखते हुए प्रशासन कर सकें।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित पुष्पा पाठक के लेख पर आधारित। 6 अप्रैल, 2021