हाशिए पर शिक्षा

Afeias
03 May 2018
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Date:03-05-18

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संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट कहा गया है कि भारत के प्रजातांत्रिक गणराज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की पूर्ति करनी चाहिए। इन सभी की प्राप्ति में शिक्षा एक आवश्यक तत्व है। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में भी बच्चों को शिक्षा देना राज्य का कर्त्तव्य  माना गया है। संविधान के 86वें संशोधन एवं शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत इस तथ्य को कार्यान्वित करने का प्रावधान रखा गया है। केन्द्र के दिशानिर्देश और निष्ठावान प्रयासों के माध्यम से ही राज्य इसकी पूर्ति कर सकते हैं।

शिक्षा के अधिकार अधिनियम को पारित हुए दस वर्ष होने को हैं। पूरे देश में आज भी इस क्षेत्र के आंकड़े चैंकाने वाले हैं।

  • शिक्षा मंत्रालय के अनुसार गोवा, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम और तेलंगाना राज्यों ने आज तक इस अधिनियम के अंतर्गत प्रवेश के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया है।
  • अधिनियम के अनुच्छेद 12(1)(ब) के अनुसार गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीट आरक्षित रखना अनिवार्य है। इसकी भरपाई राज्य सरकार द्वारा की जाती है। राज्यों को प्रति बच्चा खर्च केन्द्र सरकार को सूचित करना होता है।

29 राज्यों और सात केन्द्र शासित प्रदेशों में से केवल 14 ने ही इस खर्च के बारे में केन्द्र सरकार को सूचना दी है। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता, और लक्ष्यद्वीप में निजी स्कूल ही नहीं हैं।

  • 2017-18 में जिन 15 राज्यों ने केन्द्र सरकार को इसकी सूची दी है, उनमें से केवल छः राज्यों को ही मंजूरी दी गई है।
  • बच्चों के पंजीकरण पर 18 राज्यों ने बिना कारण बताए सूचना देने से ही मना कर दिया। सवाल उठता है कि बच्चों के पंजीकरण की संख्या बताए बिना राज्य सरकारें, केन्द्र से प्रतिपूर्ति की मांग कैसे कर सकती हैं?
  • इस प्रावधान के लिए दस राज्यों में काम करने वाली संस्था इंडस एक्शन ने बताया है कि राज्यों में प्रति बच्चा व्यय और आनुषांगिक व्यय को एकत्रित करने की कोई सुव्यवस्थित प्रक्रिया नहीं है। प्रतिपूर्ति अदायगी की भी यही स्थिति है।

यही कारण है कि निजी स्कूल अधिनियम के अंतर्गत बच्चों को प्रवेश देने से मना कर देते हैं।

  • 2015 में आई आई एम, अहमदाबाद ने जिला शिक्षा सूचना तंत्र से डाटा एकत्रित करके बताया था कि अधिनियम के अंतर्गत अगले आठ सालों तक 1.6 करोड़ सीटें उपलब्ध रहेंगी। इसका अर्थ है कि निजी स्कूलों में ई.डब्ल्यू.एस. (आर्थिक रूप से कमजोर) वर्ग में प्रतिवर्ष 20 लाख सीटें हैं। शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष मात्र 5-6 लाख सीटें ही भरी जाती हैं।

शिक्षा के अधिकार की पूर्ति एवं उचित कार्यान्वयन के लिए कार्यकारिणी जिम्मेदार है। विधायिका की जिम्मेदारी है कि इस उद्देश्य हेतु वह कार्यकारिणी को उसके कर्त्तव्यों की याद दिलाता रहे। उद्देश्य की प्रतिपूर्ति के लिए साक्ष्यों की जाँच किया जाना आवश्यक है।

केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की आपात बैठक बुलाकर अधिनियम के कार्यान्व्यन में आई दरारों को भरने का प्रयत्न करे। हमारे बच्चों के भविष्य के लिए ऐसा किया जाना अनिवार्य है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित शशि थरुर के लेख पर आधारित।