स्वास्थ्य सेवाओं का स्वास्थ्य परीक्षण हो

Afeias
24 Aug 2017
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Date:24-08-17

 

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हाल ही में गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में हुई दुर्घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों की चिकित्सा व्यवस्था बहुत लचर है। इसके कारण इन क्षेत्रों का सारा बोझ आसपास के जिला अस्पतालों पर आ पड़ता है। ये अस्पताल इतना बोझ उठाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं रखते, इसलिए गोरखपुर जैसी दुर्घटनाएं होती हैं।

  • इस व्यवस्था की चरमराती स्थिति का अंदाज हमें लेखा एवं नियंत्रक परीक्षक की प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य संबंधी मार्च 2016 की रिपोर्ट से लग सकता है।रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग-अलग राज्यों में स्वास्थ्य संबंधी निधि पूरी तरह से काम में नहीं ली जाती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्टाफ की कमी, आवश्यक दवाओं की कमी, टूटे-फूटे उपकरण एवं डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों का ईलाज असंभव सा हो जाता है।
  • उत्तरप्रदेश के दौरे के दौरान लेखा एवं नियंत्रक परीक्षक ने पाया कि लगभग 50% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कोई डॉक्टर नहीं है।बिहार, झारखंड, सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जरूरत की तुलना में स्वास्थ्य केंद्र बहुत ही कम हैं। इस कारण से गोरखपुर जैसे जिला अस्पतालों पर भार बहुत बढ़ जाता है।
  • भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक 2007 और 2012 में जारी किए जा चुके हैं। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं का उन्नत स्वरूप भी काफी समय पहले निश्चित किया जा चुका है।केंद्र सरकार ने 2020 तक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने का लक्ष्य रखा है। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति भी बनाई गई है, जिसमें शिशु मृत्यु दर को घटाकर कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त निवेश एवं निरीक्षण की आवश्यकता होगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रत्येक ग्राम के 3 कि.मी. के दायरे में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता हो।साथ ही सभी राज्यों में संक्रामक रोगों को फैलने से बचाना होगा। तभी मातृत्व एवं शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकेगा। नीति आयोग ने अपने 2020 के एजेंडा में स्वास्थ्य सेवाओं में सिंगल वियर सिस्टम जैसी प्रणाली लाने की सिफारिश की है। इसके माध्यम से सभी मेडिकल बिल सरकार द्वारा नियंत्रित कड़ी के माध्यम से दिए जाएंगे। इसमें सभी स्वास्थ्य प्रदाताओं को समान भुगतान किया जाएगा और सभी नागरिकों को समान स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकेंगी।
  • इतना ही नहीं नीति आयोग ने 2019-20 तक सरकार को अपने स्वास्थ्य बजट में तीन गुना वृद्धि करने की अपील भी की है।अगर हम भारत में असंक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु दर को देखें, तो यह 6% है, जबकि केंद्रीय बजट में इस पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के 20,000 करोड़ में से मात्र 3% का आवंटन किया गया है।
  • अस्पतालों में आपूर्ति की कमी बनी रहती है। इसे ठीक करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र को सशक्त बनाने के साथ-साथ निजी क्षेत्र के साधनों और क्षमताओं का भी लाभ उठाया जाना चाहिए।मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का पुर्नगठन किया जाना चाहिए।जिला स्तरीय अस्पतालों में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप वाला मॉडल लागू किया जाना चाहिए।
  • आपातकालीन परिवहन, मोबाईल स्वास्थ्य ईकाई आदि ऐसी पार्टनरशिप के सफल उदाहरण हैं।स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए आयोग ने स्वच्छ भारत की तर्ज पर जिला अस्पतालों को रैंकिंग देने का भी निश्चय किया है।अगले तीन वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं में आमूलचूल परिवर्तन के लिए राज्यों से तकनीकी सहायता के लिए साझेदारी की जा रही है।

स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का सर्वोत्तम  मार्ग उसकी आपूर्ति को बढ़ाना है। इससे स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती हो जाएंगी और सभी के वहन योग्य होगी।

समाचार पत्रों पर आधारित।